क्रिया किसे कहते है ? क्रिया के भेद एवं उदाहरण

पूरी दुनिया क्रियाशील है। ऐसे में क्रिया किसे कहते है , इसको जानना अत्यंत आवश्यक है। क्योकि हम क्रिया के भेद एवं उनके समुचित प्रयोग के बिना हिंदी के शब्द एवं वाक्यों का सही उच्चारण तक नहीं कर सकते।

क्रिया एवं उसके भेद का ज्ञान आपको हिंदी भाषा के मर्म को समझने में काफी ज्यादा मदद करता है, और आप बिना कोई गलती किये फर्राटेदार हिंदी बोल सकते है।

kriya kise kahte hai aur kriya ke bhed janne ke liye utsuk log
kriya kise kahte hai

क्रिया किसे कहते है ?

जिस शब्द से किसी काम या घटना के होने का बोध हो , उसे ' क्रिया ' कहते हैं।

दुनिया में निरन्तर कुछ - न - कुछ हो रहा है। कोई लिख रहा है। कोई पढ़ रहा है। कोई दौड़ रहा है।

कहीं मकान बन रहे हैं। कहीं पानी बरस रहा है । कहीं तेज हवा चल रही है। कहीं नाटक हो रहा है,
सारी दुनिया क्रियाशील है।

क्रिया के भेद 

कर्म जाती तथा रचना के आधार पर क्रिया के मुख्यतः 3 भेद होते है। जो निचे अंकित किये गए है।

1. अकर्मक 
2. सकर्मक
3. द्विकर्मक

1. अकर्मक क्रिया किसे कहते है ?

जिस क्रिया का फल सीधे कर्ता पर पड़े , उसे ' अकर्मक ' ( कर्म - रहित ) क्रिया कहते हैं। क्रिया में ' क्या '  या  'किसको' लगाकर प्रश्न करने पर यदि उत्तर नहीं मिले , तो क्रिया ' अकर्मक ' होगी ;  

उदाहरण :

1. बालक दौड़ता है। 
2. बालक सोता है। 
3. बालक हँस रहा है।

प्रथम तीन वाक्यों में ' बालक ' कर्ता है एवं ' दौड़ता है ' , ' सोता है ' और ' हँस रहा है ' क्रियाएँ हैं।

ये वाक्य पूर्ण हैं । इनके अर्थ स्पष्ट हैं। क्रियाओं के व्यापार की पूर्ति के लिए कोई और शब्द आवश्यक नहीं है। क्रिया का फल केवल कर्ता पर पड़ रहा है। 

अन्य उदाहरण :

1. बालक क्या दौड़ता है ? 
2. बालक किसको हँस रहा है ?

 इन प्रश्नों के कोई उत्तर नहीं हैं। अतः , ' दौड़ता है ' और ' हँस रहा है ' अकर्मक क्रियाएँ हुईं।

2. सकर्मक क्रिया किसे कहते है ? 

जिस क्रिया का फल कर्म पर पड़े , उसे ' सकर्मक ' ( कर्म - सहित ) क्रिया कहते हैं। इसके साथ ही क्रिया में ' क्या '  या  'किसको' लगाकर प्रश्न करने पर यदि उत्तर मिले , तो क्रिया सकर्मक होगी।

उदाहरण :

1. बालक पत्र लिखता है। 
2. बालक भात खाता है। 
3. बालक राम को देखता है। 

दूसरे तीनों वाक्यों में ' बालक ' कर्ता है और ' लिखता है ' , ' खाता है ' और ' देखता है ' क्रियाएँ हैं। 

पत्र , भात और राम क्रमशः उनके कर्म हैं। ये वाक्य पूर्ण हैं। इनके अर्थ स्पष्ट हैं।

क्रियाओं के व्यापार की पूर्ति के लिए कोई अन्य शब्द आवश्यक नहीं है। यहाँ क्रिया का फल कर्ता के अतिरिक्त कर्म पर पड़ रहा है।

अन्य उदाहरण :

1. बालक क्या लिखता है ? 
2. बालक किसको देखता है ? 

इन प्रश्नों के क्रमशः उत्तर हैं - ' पत्र ' और ' राम ' ये कर्म हैं। अतः , ' लिखता है ' और ' देखता है ' सकर्मक क्रियाएँ हुईं। 


✅ टिप्पणी - कुछ क्रियाएँ अकर्मक और सकर्मक दोनों ही होती हैं । उनके प्रयोग ( क्या या किसको लगाकर प्रश्न पूछने ) से ही पता चलेगा कि वे अकर्मक हैं या सकर्मक।

3. द्विकर्मक क्रियाएँ किसे कहते है ?

ऐसी क्रियाएँ जिनके साथ दो कर्म आते हैं  द्विकर्मक क्रियाएँ '  कहलाती हैं।

द्विकर्मक द्वि ( दो ) + कर्मक ( कर्मवाला )

 दो कर्मों में एक कर्म क्रिया का अर्थ पूरा करने के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है । वह किसी पदार्थ का बोध कराता है और ' मुख्य कर्म ' कहलाता है।

 ऐसी क्रिया में ' क्या ' लगाकर प्रश्न करने से जो उत्तर मिलता है वही मुख्य कर्म है ; जैसे - ' कहानी ' , ' उपदेश ' और ' मार्ग '।

 दूसरा कर्म किसी प्राणी का बोध कराता है और वह ' गौण कर्म ' कहलाता है । गौण कर्म के साथ ' को ' विभक्ति अवश्य रहती है।

 ऐसी क्रिया में 'किसको ' लगाकर प्रश्न करने से जो उत्तर मिलता है वही गौण कर्म है ; जैसे - ' राहुल ' ' अर्जुन ' , और ' शिष्य '।

उदाहरण :

1. यशोधरा ने राहुल को कहानी सुनायी। 
2. कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिये।
3. गुरु शिष्य को मार्ग दिखाता है। 

ऊपर के वाक्यों में ' सुनायी ' , ' दिये ' और ' दिखाता है ' सकर्मक क्रियाएँ हैं , जिनके क्रमशः ' कहानी ' ' उपदेश ' और ' मार्ग ' कर्म हैं। 

इनके अतिरिक्त , क्रमशः ' राहुल ' , ' अर्जुन ' और ' शिष्य ' भी कर्म हैं।

संरचना के आधार पर क्रिया के भेद :

संरचना के आधार पर क्रिया के कुल 4 भेद है, जो निम्नांकित है।

1. अपूर्ण क्रियाएँ
2. संयुक्त क्रिया
3. प्रेर्नार्थ क्रिया
4. नाम धातु और अनुकरण धातु
      

1. अपूर्ण क्रियाएँ 

SET 1 :
१. प्रयाग तीर्थराज है । 
२. कबीर संत हुए । 
३. पुत्र वीर निकला । 
४. वह मंत्री बना ।  
५. युधिष्ठर धर्मराज कहलाये । 

 SET 2 :
१. नौकर काम पूरा करेगा । 
२. मैं आपको गुरु मानता हूँ । 
३. मैं उसे विद्वान् समझता हूँ । 
४. चन्द्रगुप्त ने चाणक्य को मंत्री बनाया ।
५. मैं उसे दण्ड दिलाना चाहता हूँ । 

SET 1 के वाक्यों में 'है' , 'हुए' , 'निकला' , 'बना' और 'कहलाये' ऐसी अकर्मक क्रियाएँ हैं , जिनका अर्थ कभी - कभी अकेले कर्ता से पूरा नहीं होता।

इनका अर्थ पूरा करने के लिए इनके साथ कर्ता से सम्बन्ध रखनेवाली कोई संज्ञा या विशेषण ' पूरक ' के रूप में लगाना पड़ता है ;

जैसे --है ' , ' हुए ' , ' निकला ' , ' बना ' और ' कहलाये ' के लिए क्रमशः ' तीर्थराज ' विशेषण , ' संत ' संज्ञा , ' वीर ' विशेषण , ‘ मंत्री ' संज्ञा और ' धर्मराज ' विशेषण ' उद्देश्य पूरक ' के रूप में हैं । 

ऐसी क्रिया  'अकर्मक क्रिया ' कहलाती है ।
इनमें ' क्या ' लगाकर प्रश्न करने से जो उत्तर मिले , वह ' उद्देश्य पूरक ' है । 

SET 2 के वाक्यों में ' करेगा ' , ' मानता हूँ ' , ' समझता हूँ ' , ' बनाया ' और ' चाहता हूँ ' ऐसी सकर्मक क्रियाएँ हैं जिनका अर्थ अकेले कर्म से पूरा नहीं होता ।

इनका अर्थ पूरा करने के लिए इनके साथ कर्म से सम्बन्ध रखनेवाली कोई संज्ञा या विशेषण ' पूरक ' के रूप में लगाना पड़ता है ; 

जैसे- ' पूरा ' विशेषण , ' गुरु ' संज्ञा , ' विद्वान् ' विशेषण , ‘ मंत्री ' संज्ञा और ' दण्ड दिलाना ' क्रियार्थक संज्ञा ' कर्म पूरक ' के रूप में हैं । 

ऐसी क्रिया ' अपूर्ण सकर्मक क्रिया ' कहलाती है । इसमें ' क्या ' लगाकर प्रश्न करने से जो उत्तर मिले , वह ' कर्म पूरक ' है। 

टिप्पणी- 


( 1 ) सजातीय कर्म : जब अकर्मक या सकर्मक क्रिया के साथ उसी क्रिया से बनी हुई भाववाचक संज्ञा कर्म होकर आये , तो ऐसे कर्म को ' सजातीय कर्म ' कहते हैं ; 

जैसे- वह लम्बी दौड़ दौड़ा । 
भारतीय सेना अच्छी लड़ाई लड़ती है । 
तोता सुन्दर बोली बोलता है । 
लड़का खेल खेलता है । 

इन वाक्यों में दौड़ , लड़ाई , बोली , खेल सजातीय कर्म हैं । 

( 2 ) सजातीय कर्म लेनेवाली अकर्मक क्रिया सकर्मक क्रिया हो जाती है ; जैसे उदाहरण में ' दौड़ा ' , ' लड़ती है ' और ' बोलता है ।

 ( 3 ) जब सकर्मक क्रिया को कर्म की आवश्यकता न हो और क्रिया का केवल कार्य ही प्रकट हो , तो सकर्मक क्रिया भी अकर्मक क्रिया - सी हो जाती है ;

 जैसे ईश्वर की कृपा से बहरा सुनता है , गूंगा बोलता है और अंधा देखता है ।


2. संयुक्त क्रिया


मैंने सारी पुस्तक पढ़ डाली । 
मुझे काम पर लौटना पड़ा । 
उसने पत्र भेज दिया । 
मैं हिसाब बना चुका।

ऊपर के वाक्यों में ' पढ़ डाली ' एक क्रिया नहीं , दो क्रियाएँ हैं -- ' पढ़ना ' और ' डालना '।

इसी तरह अन्य क्रियाएँ भी दो क्रियाओं के मेल से बनीहैं।

संयुक्त क्रिया किसे कहते हैं ?

ऐसी क्रिया जो एक से अधिक क्रियाओं के संयोग ( मेल ) से बनती है , ' संयुक्त क्रिया कहलाती है। 


संयुक्त क्रिया में पहला भाग ' मूल क्रिया ' और अन्तिम भाग ' सहायक क्रिया ' कहलाती है ; 

जैसे , ऊपर के उदाहरणों में पढ़ना , लौटना , भेजना और बनाना मूल क्रियाएँ तथा डालना , पड़ना , देना और चुकना सहायक क्रियाएँ हैं । 

संयुक्त क्रियाओ में ये सहायक क्रियाए आती है -

आना , उठना , करना , चाहना , चुकना , जाना , डालना , देना , पड़ना , बनना , बैठना , रहना , लगना , सकना , होना ।

 इनमें ' सकना ' और ' चुकना ' को छोड़कर शेष क्रियाएँ स्वतन्त्र भी हैं और दूसरी सहायक क्रियाओं से मिलकर स्वयं संयुक्त क्रियाएँ भी हो सकती हैं ;जैसे- 

' जाड़ा लगता है ' में ' लगता है ' क्रिया स्वतन्त्र रूप में आयी है ।

' जाड़ा लग जाता है ' में ' लगना ' मुख्य क्रिया के साथ ' जाता है ' सहायक क्रिया है । 
' वह पढ़ने लगता है ' में ' लगता है ' सहायक क्रिया है ।

 विभिन्न प्रकार के भाव प्रकट करने में इन ' सहायक क्रियाओं' का बहुत बड़ा महत्त्व है । नीचे के उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है --

( 1 ) आना , जाना , रहना -- नित्य बोधक -- यह बात सदा से होती आयी है । बच्चा बढ़ता जाता है । नदी बहती रहती है ।

( 2 ) उठना , बैठना -- अचानकता बोधक-- वह सहसा बोल उठा | मालिक नौकर को मार बैठा ।

( 3 ) करना -- अभ्यास बोधक --- वह गाया करती है । सबेरे घूमा 

( 4 ) चाहना -- इच्छा बोधक --- मैं पढ़ना चाहता हूँ । वह शान्ति चाहता है । 

( 5 ) चुकना -- पूर्णता ( समाप्ति ) बोधक -- स्त्री भोजन बना चुकी है । मैं खा चुका ।

( 6 ) डालना -- पूर्णता बोधक -- उसने पूरी पुस्तक पढ़ डाली । 

( 7 ) देना -- अनुमति बोधक -- अध्यक्ष ने सदस्य को बोलने दिया । मुझे जाने दें 

( 8 ) पड़ना -- विवशता बोधक -- मुझे ऋण लेना पड़ा । मुझे जाना पड़ता है । 

( 9 ) बनना -- योग्यता बोधक -- रोगी से चलते बनता है। 
( 10 ) लगना -- आरम्भ बोधक -- वह गाने लगा । विद्यार्थी स्कूल जाने लगे । 

( 11 ) सकना -- शक्ति बोधक -- वह10 मील पैदल चल सकता है । सकना -- अनुमति बोधक -- अब आप जा सकते हैं ।

( 12 ) होना-- आवश्यकता बोधक -- डाक्टर को सबेरे - साँझ रोगी देखना होता है ।

3. प्रेरणार्थक क्रिया ( क्रिया के द्विकर्तक प्रयोग)


 साधारण क्रिया प्रेरणार्थक क्रिया राम ग्रन्थ पढ़ता है । राम सोहन से ग्रन्थ पढ़वाता है । माँ पत्र लिखती है । माँ बालक से पत्र लिखवाती है । लड़के खीर बनाते हैं । लड़के माँ से खीर बनवाते हैं । माली ने माला बनायी । माली ने मालिन से माला बनवायी ।

 ' पढ़ता है ' क्रिया का कर्ता ' राम ' है । ' पढ़वाता है ' क्रिया का ( शब्द - प्रयोग में ) कर्ता ' राम ' है ; पर पढ़ने का काम तो ' सोहन ' कर रहा है । 

तब असली कर्ता तो ' सोहन ' ही हुआ । जो काम करे , वही कर्ता है । पर राम सोहन से पढ़वाता है , तभी वह पढ़ता है ।

 ' पढ़वाता है ' क्रिया से उसके कर्ता पर दूसरे कर्ता की प्रेरणा समझी जाती है , इसलिए उसे ' प्रेरणार्थक क्रिया ' कहते हैं । 

जो कर्ता दूसरे पर प्रेरणा करता है उसे ' प्रेरक कर्ता ' और जिस पर प्रेरणा की जाती है उसे ' प्रेरित कर्ता ' या मुख्य कर्ता ' कहते हैं ।

 ऊपर के वाक्यों में पढ़वाता है , लिखवाती है , बनवाते हैं और बनवायी प्रेरणार्थक क्रियाएँ हैं ।

 राम , माँ , लड़के और माली क्रमशः प्रेरक कर्ता तथा सोहन , बालक , माँ और मालिन क्रमशः प्रेरित ( मुख्य ) कर्ता हैं ।

 प्रेरणार्थक क्रियाओं के बारे में ये बातें स्पष्ट हैं -

 ( 1 ) सर्वत्र विभक्ति - रहित प्रेरक कर्ता के अनुसार ही क्रिया के लिंग और वचन हैं , प्रेरित कर्ता के अनुसार नहीं ।

 ( 2 ) प्रेरित ( मुख्य ) कर्ता बहुधा करण कारक के रूप में आता है और उसके साथ ' से ' विभक्ति रहती है ।

 ( 3 ) प्रेरणार्थक क्रिया अकर्मक क्रिया से बने या सकर्मक क्रिया से , वह सदा सकर्मक ही रहती है ।

 बहुधा अकर्मक से सकर्मक और सकर्मक से प्रेरणार्थक क्रिया बनती है , पर आना , जाना , सकना , होना , रुचना और पाना से दूसरे प्रकार की क्रियाएँ नहीं बनती हैं । 

अकर्मक क्रिया सकर्मक क्रिया प्रेरणार्थक क्रिया गिरना गिराना गिरवाना हँसना हँसाना हँसवाना जगना जगवाना घुमना घुमाना घुमवाना 

अकर्मक धातु* से सकर्मक धातु इस प्रकार बनती है -

( 1 ) धातु के आद्य ( आदि के ) स्वर को दीर्घ करने से- कटना - काटना , पटना - पाटना , बँधना - बाँधना , मरना - मारना ।

 ( 2 ) तीन अक्षरों के धातु में दूसरे अक्षर का स्वर दीर्घ करने से उखड़ना - उखाड़ना , निकलना - निकालना , बिगड़ना - बिगाड़ना । 

( 3 ) किसी - किसी धातु के आद्य ' इ ' को ' ए ' ( ' ) और ' उ ' को ' ओ ' ( 1) में बदलने से छिदना - छेदना , दिखना - देखना , फिरना - फेरना ।
खुलना - खोलना , घुलना - घोलना , मुड़ना - मोड़ना ।

 ( 4 ) . कई धातओं के अन्त्य ' ट ' को ' इ ' करने से और आद्य उकार या ऊकार को ओकार करने से--

 जुटना - जोड़ना , छूटना - छोड़ना , टूटना - तोड़ना , फूटना - फोड़ना

 प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के नियम -

नियम 1. हिन्दी में प्रेरणार्थक क्रियाओं से भी दूसरी प्रेरणार्थक क्रियाएँ बनती हैं जिन्हें ' द्वितीय प्रेरणार्थक क्रियाएँ ' कहते हैं ।

 मूल धातु में ' आ ' जोड़ने से ' प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया ' और ' वा ' जोड़ने से 'द्वितीय प्रेरणार्थक क्रियाएँ 'बनती हैं ; जैसे--

 मूल धातु प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया उठा - ना उठवाना गिर - ना गिरा - ना गिरवा - ना सुना - ना सुनवा - ना फैल - ना फैला - ना  फैलवा-ना


*धातु - -होना , खाना , पीना , लेना आदि सामान्य क्रिया - वाचक पद संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होने पर ' क्रियार्थक संज्ञा ' कहलाते हैं ।

 जैसे , ' टहलना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है । ' वाक्य में ' टहलना ' क्रियार्थक संज्ञा है ।

 सामान्य क्रिया - वाचक पद में ' ना ' लगा रहता है । इस ' ना ' को हटाने पर जो शब्दांश शेष रहता है वही ' धातु ' ( क्रिया पद का मूल रूप ) है ।

 जैसे , एक ही ( तौवा आदि ) धातु से विभिन्न प्रकार के बरतन बनते हैं , उसी तरह एक - एक धातु शब्द से विभिन्न प्रकार के क्रिया - पद बनते हैं ।

 ' खाना ' क्रिया - पद में ' खा ' धातु है और ' खा ' धातु से खाता है , खाया , खाया होगा , खा रहा है आदि विभिन्न क्रिया - पद बनते हैं ।

 नियम 2. कहीं - कहीं दो अक्षरों के धातु में आद्य दीर्घ स्वर का हस्व हो जाता है और आद्य एकारांत का इकारांत तथा ओकारांत का उकारांत हो जाता है ,

 पर आद्य ऐकारांत और जौकारांत में कोई परिवर्तन नहीं होता । 

जैसे -
जाग - ना जगा - ना जगवा 
ना भीग - ना भिगा - ना भिगवा 
ना डूब - ना डुबान्ना डुबवाना 
लेटना लिया - ना लिटवाना 
ओढ़ - ना उढ़ाना उढ़वाना 
बोलना बुलाना बुलवाना

 नियम 3. एकाक्षरी धातु के अंत में ' ला ' और ' लवा ' लगाते हैं और दीर्घ स्वर को ह्रस्व कर देते हैं ; जैसे --

 ना पिला - ना पिलवा - ना । सी - ना सिला - ना सिलवा - ना । छुला - ना छुलवाना । दे - ना दिला ना दिलवा - ना। धो - ना धुला - ना धुलवा - ना । ढो - ना दुलाना दुलवाना।

4. नाम धातु और अनुकरण धातु

  
नाम ( संज्ञा ) , सर्वनाम या विशेषण से बननेवाली क्रिया ' नामधातु ' कहलाती है ; जैसे - धिक्कार धिक्कारना , लाठी - लठियाना , अलग - अलगाना , अपना - अपनाना।

 किसी पदार्थ की ध्वनि के अनुकरण पर बननेवाली क्रिया ' अनुकरण धातु ' है ; जैसे - खटखट खटखटाना , बड़बड़ - बड़बड़ाना , भनभन - भनभनाना।


सम्पूर्ण व्याकरण : शब्द > संज्ञा > सर्वनाम > वचन > लिंग > कारक > विशेषण > क्रिया > काल

चलते-चलते :

क्रिया सचमुच व्याकरण का एक बहुत ही जटिल भाग है। अतएव ये समझना की आखिर क्रिया किसे कहते है , क्रिया के कितने भेद है काफी मुश्किल हो जाता है। 

इसके बावजूद हमने हर एक टॉपिक से जुरे उदाहरण की मदद से क्रिया एवं क्रिया के भेदों को समझाने का पूरा प्रयास किया है। यदि आपको हमारा यह प्रयास पसंद आता है तो कृपया कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।

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