काल के भेद , काल की परिभाषा इत्यादि की जानकारी रखना आपको हिंदी व्याकरण से रूबरू रहने में खासी मदद करता है।
जिस प्रकार अंग्रेजी में हम वाक्यों के सुध उच्चारण के लिए Tense का अध्ययन करते है ठीक उसी प्रकार हिंदी में काल का प्रयोग करना पड़ता है।
काल किसे कहते हैं ?
क्रिया के जिस रूप से उसके होने या किये जाने के समय का बोध होता है , उसे काल कहते हैं।
व्याकरण में ' काम ' को ' क्रिया ' और ' समय ' को ' काल ' कहते हैं ।
काल के मुख्य तीन भेद हैं -
(1) वर्तमान काल
(2) भूतकाल और
(3) भविष्यत् काल
1. वर्तमान काल
चलते हुए समय में हो रही क्रिया के समय को ' वर्तमान काल ' कहते हैं।
उदाहरण :
⒜ शेर मांस खाता है । शेर मांस खा रहा है । शेर मांस खाता होगा । ( खा रहा होगा । )
⒝ रमेश स्कूल जाता है । रमेश स्कूल जा रहा है । रमेश स्कूल जाता होगा ।
⒞ गाय दूध देती है । गाय दूध दे रही है । गाय दूध देती होगी ।
(क) सामान्य वर्तमान
'शेर मांस खाता है ' का अर्थ यह नहीं है कि यह बात कहते या लिखते समय वह मांस खा ही रहा हो।
पर , सृष्टि के प्रारम्भ से शेर ने मांस खाना शुरू किया था और अब तक वह मांस ही खाता है।
इस प्रकार , शेर द्वारा मांस खाना बराबर वर्तमान है । इसी तरह 'सूर्य पूर्व में उगता है ' , ' पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है ' आदि में क्रिया की ' वर्तमानता ' स्पष्ट है ।
इन क्रियाओं से अटल सत्यता और सामान्य प्रवृत्ति या स्थिति प्रकट होती है।
'रमेश स्कूल जाता है ' और ' गाय दूध देती है ' से क्रिया के पूर्ण या अपूर्ण होने का उल्लेख न होकर सामान्य अवस्था का बोध होता है।
अतः क्रिया के जिस रूप से अटल सत्यता , सामान्य प्रवृत्ति या स्थिति अथवा वर्तमान में इसके होने का सामान्य बोध हो , उसे 'सामान्य वर्तमान काल ' की क्रिया कहते हैं।
रचना - धातु में ' ता है ' जोड़ने से यह रूप बनता है।
(ख) तात्कालिक वर्तमान
' खा रहा है ' , ' जा रहा है ' आदि क्रियाओं से यह पता चलता है कि बात कहते या लिखते समय क्रिया चल रही है । क्रिया की तात्कालिक स्थिति का बोध होता है।
अतः , क्रिया के जिस रूप से तत्काल हो रही क्रिया का बोध हो , उसे 'तात्कालिक वर्तमान काल 'की क्रिया कहते हैं।
रचना - धातु में ' रहा है ' जोड़ने से यह रूप बनता है।
(ग) संदिग्ध वर्तमान
' खाता होगा ' या ' खा रहा होगा ' आदि क्रियाओं से यह पता चलता है कि क्रिया वर्तमान में हो रही होगी , किन्तु उसका होना निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है , संदिग्ध है , संदेहात्मक है।
पूरी जानकारी नहीं है , फिर भी क्रिया की वर्तमानता की ओर झुकाव है । ' ता ' या ' रह ' वर्तमान को और ' होगा ' सम्भावना ( संदिग्धता ) को सूचित कर रहे हैं । अतः,
क्रिया के जिस रूप से वर्तमान काल में इसका होना संदिग्ध ( संदेहात्मक या अनिश्चित ) हो , उसे ' संदिग्ध वर्तमान काल ' की क्रिया कहते हैं।
रचना - धातु में ' ता होगा ' या ' रहा होगा ' लगाने से यह रूप बनता है।
2. भूतकाल
बीते हुए (अतीत) समय में हो चुकी क्रिया के समय को 'भूतकाल' कहते हैं।
(a) शेर ने गाय का मांस खाया । सूर्य डूबा । वह गया ।
(b) मैंने भात खाया है । सूर्य डूबा है । वह गया है ।
(c) मैंने भात खाया था । सूर्य डूबा था । वह गया था ।
(d) मैं भात खाता था । सूर्य डूबता था । वह जाता था ।
(e) मैं भात खा रहा था । सूर्य डूब रहा था । वह जा रहा था ।
(f) मैंने भात खाया होगा । सूर्य डूबा होगा । वह गया हो ।
(g) वर्षा होती , तो अन्न होता ।
(h) शासन सुदृढ़ होता , तो जनता सुखी होती ।
(क) सामान्य भूतकाल
इन क्रियाओं से भूतकाल की सामान्यता प्रकट होती है।' या ' और ' आ ' प्रत्यय भूतकाल की सामान्यता प्रकट करते हैं।
अतः, क्रिया के जिस रूप से भूतकाल की सामान्यता का बोध हो , उसे ' सामान्य भूतकाल ' की क्रिया कहते हैं।
(ख) आसन्न भूतकाल
' खाया है ' , ' डूबा है ' , ' गया है ' क्रियाओं से भूतकाल की निकटता का बोध होता है।
क्रिया पूरी हो चुकी है , परन्तु अभी - अभी पूरी हुई है -दूर की चीज नहीं है । वर्तमान के समीप ही भूत है ।
'आसन्न भूतकाल' - वर्तमान के समीप का ( निकटस्थ ) भूतकाल । भूतकाल के ' या ' प्रत्यय में वर्तमान काल की है ' क्रिया की यह करामत है । " है ' ने भूतकाल को वर्तमान के समीप ( आसन्त्र ) ला दिया।
अतः क्रिया के जिस रूप से अभी - अभी या निकट ( आसन ) काल में इसकी समाप्ति को वोघ हो , उसे ' आसन्न भूतकाल ' की क्रिया कहते हैं ।
(ग) पूर्ण भूतकाल
' खाया था ' , ' डूबा था ' , ' गया था ' क्रियाओं से भूतकाल की पूर्णता का बोध होता है । क्रिया की पूर्णता दूर की चीज हो गयी।
' पूर्ण ' का अर्थ है ' आसन्न ' का विपरीत ' दूर ' । वर्तमान से दूर पड़ जानेवाला भूतकाल ही तो पूर्ण भूतकाल हुआ ।
भूतकाल के ' या ' प्रत्यय को भूतकाल के ' था ' क्रियापद का सहयोग मिल गया । भूतकाल पूर्ण हो गया । अतः ,
क्रिया के जिस रूप से दूर भूतकाल में इसकी समाप्ति का बोध हो , उसे ' पूर्ण भूतकाल ' की क्रिया कहते हैं ।
रचना - धातु में ' या था ' या ' आ था ' जोड़ने से या सामान्य भूतकाल में 'था ' जोड़ने से यह रूप बनता है ।
(घ) अपूर्ण भूतकाल
' खाता था ' , ' खा रहा था ' आदि क्रियाओं से पता चलता है कि क्रिया भूतकाल में शुरू हुई , पर क्रिया समाप्त (पूरी) नहीं हुई।
'ता ' और ' रहा ' वर्तमान काल का द्योतक है और ' था ' भूतकाल का।
भूतकाल में वह क्रिया उस समय वर्तमान थी । जैसे , ' तब वह पटना में रहता था ' वाक्य में जब की बात है , उसका रहना जारी था । अतः ,
क्रिया के जिस रूप से उसके भूतकाल में प्रारम्भ होने पर उसे पूर्ण नहीं होने का बोध हो , उसे ' अपूर्ण भूतकाल ' की क्रिया कहते हैं।
रचना --- धातु में ' ता था ' या ' रहा था ' जोड़ने से । संदिग्ध भूतकाल
' खाया होगा ' , ' डूबा होगा ' , ' गया हो ' से भूतकाल में क्रिया की समाप्ति में सन्देह या सम्भावना मालूम पड़ती है |
भूतकाल के ' या ' प्रत्यय के साथ सन्देह या सम्भावना प्रकट करनेवाला ' हो ' या ' होगा ' जुट गया । अतः ,
क्रिया के जिस रूप से भूतकाल में उसकी समाप्ति की सम्भावना हो या उसकी समाप्ति में सन्देह हो , उसे ' संदिग्ध भूतकाल ' की क्रिया कहते हैं ।
रचना -- सामान्य भूतकाल के रूप में ' होगा ' या ' हो ' जोड़ने से।
(ड़) हेतुहेतुमद् भूतकाल
' वर्षा होती , तो अन्न होता ' में भूतकाल में अन्न का होना वर्षा के होने पर निर्भर था।
पहली क्रिया ' होती ' दूसरी क्रिया ' होता ' का हेतु ( कारण ) रूप है।
' ता ' सामान्य प्रत्यय ' धातु ' में लगने के बाद उसमें कोई सहायक क्रिया नहीं है । यहाँ एक शर्त के रूप में कारण कार्य रूप से वाक्य का प्रयोग हुआ है ।
' तो ' एक शर्त के रूप में है और वाक्य में कारण कार्य भाव प्रकट है । इससे स्पष्ट है कि क्रिया हुई ही नहीं है ।
न वर्षा हुई है , न अन्न ही पैदा हुआ है । इसी को ‘ हेतुहेतुमद् भूत ' कहते हैं । ऐसा भूतकाल जिसमें ' हेतु ( कारण ) और ' हेतुमान ' हो ।
वर्षा होना ' हेतु ' है और अन्न का होना ' हेतुमान ' | अतः , क्रिया के जिस रूप से भूतकाल में उसके कार्य और हेतु ( कारण ) का बोध हो , उसे ' हेतुहेतुम भूतकाल की क्रिया कहते हैं । रचना -- धातु में ' ता ' जोड़ने से ।
3. भविष्यत् काल
आनेवाले समय में होनेवाली क्रिया के समय को 'भविष्यत् काल ' कहते हैं।
१. मोहन जाएगा । वह खाएगी । वह सौ वर्ष जिएगा ।
२. मोहन जाए । वह खाए । वह पढ़े ।
३. मोहनजी जाइए । दुर्भावना जले । वह सौ वर्ष जिए ।
1. सामान्य भविष्यत् काल
' जायेगा ' , ' खायेगी ' , ' जिएगा ' आदि क्रियाओं से पता चलता है कि क्रिया के भविष्य में होने की निश्चयात्मकता जान पड़ती है।
अतः , क्रिया के जिस रूप से भविष्य काल में उसके होने की निश्चयात्मकता का बोध हो , उसे ' सामान्य भविष्यत् काल ' की क्रिया कहते हैं।
रचना - धातु में ' एगा ' जोड़ने स।
2. सम्भाव्य भविष्यत् काल
' जाए ' , ' खाए ' , ' पढ़े ' आदि क्रियाओं से भविष्यत् काल में इनके होने की सम्भावना मात्र का बोध होता है । अतः ,
क्रिया के जिस रूप से भविष्यत् काल में उसके होने की सम्भावना मात्र प्रकट हो , उसे ' सम्भाव्य भविष्यत् काल ' की क्रिया कहते हैं।
रचना - धातु में ऊँ , ए, ऐं जोड़ने से।
3. विशेष भविष्यत् काल
' मोहनजी जाइए ' , ' दुर्भावना जले ' , ' वह सौ वर्ष जिए ' वाक्यों में ' जाइए ' से आज्ञा या अनुरोध , ' जले ' से इच्छा या प्रार्थना , ' जिए ' से आशीर्वाद का बोध होता है।
अतः , क्रिया के जिस रूप से विधि , आज्ञा , प्रार्धना , आशीर्वाद , शाप आदि का बोध हो उसे 'विशेष भविष्यत् काल ' की क्रिया कहते हैं।
काल विश्लेषण से जुडी महत्वपूर्ण बाते :-
1. क्रिया पद की पहचान
(क) हूँ , है , हैं , हो वर्तमान काल के क्रिया - पद हैं।
था , थे , थी , थीं भूतकाल के क्रिया - पद हैं।
गा, गे , गी भविष्यत् काल की क्रिया में लगते हैं।
(ख) हूँ , है , हैं , हो ; था , थे , थी और थीं अकेले रहने पर पूर्ण क्रिया - पद के रूप में प्रयुक्त होते हैं ; जैसे , ईश्वर है। वह वीर था।
पर किसी अन्य क्रिया - पद के साथ आने पर ये क्रिया की 'काल - रचना ' में सहायक होते हैं ।
2. काल प्रत्यय
काल - रचना के लिए धातु* में कुछ ' प्रत्यय ' लगते हैं जिन्हें ' काल प्रत्यय ' कहते हैं ; जैसे , ' खा ' धातु में ' ता ' , 'या' , 'ऊँ' , 'ए' , 'ओ' लगाने से क्रमशः खाता , खाया , खाऊँ , खाये , खाओ की रचना हुई।
काल प्रत्यय के दो भेद हैं -
(क) विकारी
(ख) अविकारी
(1) विकारी काल प्रत्यय वे प्रत्यय हैं जिनके धातु में लगने पर क्रिया के रूप में वचन और लिंग के कारण विकार (परिवर्तन) होता हो ।
' खा ' धातु से खाता ,खाती , खाते ,खाया ,खायी ,खाये आदि।
वस्तुतः इनमें लगे प्रत्यय ' त ' और ' य ' हैं । इनमें 'आ ' जोड़ने से ' ता ' और ' या ' रूप हो गये और इनके रूप 'लड़का' जैसी संज्ञाओं की तरह चलते हैं।
पुल्लिंग बहुवचन में 'आ ' का ' ए ' और स्त्रीलिंग एकवचन में ' ई ' और बहुवचन में ' ई ' हो जाते हैं ।
जैसे -
खाता , खाते , खाती , खातीं ; खाया , खाया , खाये , खायीं।
' त ' वर्तमान काल का और ' य ' भूतकाल का प्रत्यय है।
(2) अविकारी काल प्रत्यय वे प्रत्यय हैं जिनके धातु में लगने पर क्रिया के रूप में वचन और लिंग के कारण विकार (परिवर्तन) नहीं होता हो ;
जैसे - राम , खा । राम खाये । लड़के जाएँ । लड़को , पढ़ो । सीता , खा । सीता खाये । लड़कियाँ जाएँ । लड़कियो , पत्ो।
क्रिया - पद पुल्लिंग और स्त्रीलिंग तथा एकवचन और बहुवचन में एकरूप हैं।
ऐसे प्रत्यय हैं - अ , आ , ऊँ , ए , ऐं और ओ।
उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखकर ही आप सभी ऊपर दिए गए काल के भेदों पर विचार करेंगे।
सम्पूर्ण व्याकरण : शब्द > संज्ञा > सर्वनाम > वचन > लिंग > कारक > विशेषण > क्रिया > काल
चलते-चलते :
प्रस्तुत अध्याय में आपने क्रिया के काल का अध्ययन किया एवं जाना की काल किसे कहते है, इसके कितने भेद है और विभिन्न प्रकार के वाक्यों में काल का प्रयोग किस प्रकार से किया जा सकता है।
हमने काफी मेहनत कर के आपके लिए व्याकरण के सभी छोटे बड़े अध्यायों का एक अनोखा और समझने में आसान संग्रह तैयार किया है। जिसकी मदद से आप आसानी से हिंदी व्याकरण का विषयवार अध्ययन कर सकते है।
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