प्रस्तुत है, परोपकार पर निबंध जिसके अंतर्गत आप जीवन मे परोपकार के महत्व को समझेंगे।
साथ ही परोपकार पर ऐसा जबरदस्त निबंध लिखना सीखेंगे की एग्जाम में टॉप करना पक्का।
परोपकार पर निबंध
संसार में मानव -सृष्टि कब से चल रही है , यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है ।
सभ्यता और समाज के विकास के साथ परस्पर का परावलम्बन बढ़ता चला गया ।
फलतः एक व्यक्ति को दूसरे के सहारे की आवश्यकता बढ़ती चली गई ।
आधुनिक युग में तो हम बिना दूसरे की सहायता से ठीक प्रकार से जीवन - यापन ही नहीं कर सकते ।
इस प्रकार मनुष्य में परस्पर सहयोग की भावना का विकास होता गया और समाज में पारस्परिक सम्बन्ध बढ़ता चला गया।
समाज की स्थापना और विकास के समय से ही परोपकार भी चला आ रहा है।
मनुष्य का जीवन - संघर्ष में समय - समय पर अपने प्रबल शत्रु को पराजित करने के लिए तथा उसके आक्रमण से अपनी रक्षा के लिए दूसरों की सहायता की आवश्यकता पड़ती थी।
तभी से एक दूसरे की सहायता करके लोग समाज के कार्य को चलाते आ रहे हैं।
इस परस्पर की सहायता से व्यक्ति का जीवन आराम से चलने लगा और यह कार्य समाज में अच्छा भी समझा गया है।
फिर कालान्तर में लोगों ने बदले की भावना को न रखते हुए नि : स्वार्थ भाव से सहायता करना प्रारम्भ कर दिया और यह कार्य अधिक सराहनीय माना जाने लगा।
इसे परोपकार कहा गया।
परोपकार की परिभाषा
इस शब्द का अर्थ है -
पर - दूसरा + उपकार - सहायता = दूसरों की सहायता करना।
चूंकि इसमें स्वार्थ भावना हट चुकी थी इससे इसका रूप उच्च बन गया और यह श्रद्धास्पद कार्य माना जाने लगा ।
प्राचीन काल के समाज का स्वरूप उन्नत नहीं हो पाया थ । आगे चलकर समाज में उदारता और दया की भावना का विकास होना प्रारम्भ हुआ ।
इसका परिणाम यह हुआ कि किसी व्यक्ति को संकट में पड़ा देखकर दूसरे उसकी सहायता को दौड़ने लगे । वहाँ इस भावना को अपेक्षा नहीं थी कि दूसरे भी उसकी सहायता करेंगे ।
शनैः - शनैः समाज का रूप जटिल होता गया और धन - संपत्ति का महत्व बढ़ता गया।
उस समय सहायता के लिए शारीरिक श्रम के साथ अर्थ को भी आवश्यकता पड़ने लगी। परन्तु अर्थ देने वाला व्यक्ति फिर अपनी संपत्ति वापस लेने की धारणा रखता था।
इसमें स्वार्थ को अधिक बढ़ने का अवसर मिला और एक पक्ष के अधिक स्वार्थपरायण होने पर संघर्ष की नौबत आने लगी।
फिर भी कुछ लोग ऐसे अवश्य थे और अब भी हैं जो नि : स्वार्थ परोपकार की भावना से सहायता करते थे और करते हैं।
इस प्रकार परोपकार की सीमा शारीरिक सहायता तक ही सीमित न रही बल्कि आर्थिक और बौद्धिक सहायता तक बढ़ गई ।
इसी के अनुपात में परोपकार का सम्मान भी बढ़ा और आज परोपकार बहुत ऊंचा गुण माना जाने लगा।
वर्तमान युग में परोपकार का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया। आजकल परोपकार की आड़ में कई अवांछित कार्य भी किए जाते हैं फिर भी परोपकारियों का अभाव नहीं है।
एक व्यक्ति यदि किसी भयंकर आपित्त में पड़ गया है तो बिना स्वार्थ से उसकी शारीरिक, आर्थिक या बौद्धिक सहायता करना परोपकार है।
गरीब छात्रों की पढ़ने में सहायता करना परोपकार है। विद्यालय, अनाथालय, कुंआ, धर्मशाला आदि बनवाना परोपकार के अन्तर्गत आता है।
समाज में हर प्रकार के लोग रहते हैं। मनुष्य पर कई प्रकार की आपत्तियाँ आती रहती हैं। वह अपने सहायकों का बदला चुकाने में कभी - कभी असमर्थ रहता है।
ऐसी स्थिति में उसकी रक्षा और उन्नति कभी भी परोपकार रूप में सहायता मिली बिना नहीं हो सकती है। अतः परोपकार की आवश्यकता हुई।
समाज में सम्मान और आत्म - शांति पाने के लिए परोपकार करना आवश्यक होता है। इसकी सबसे बड़ी आवश्यकता आध्यात्मिक भावना के लिए होती है।
त्याग की भावना को बढ़ाने के लिए परोपकार आवश्यक होता है। इसके सहारे मन बड़ा त्याग करने की प्रेरणा प्राप्त करता है।
अतः वह भविष्य में व्यापक रूप से माह - माया को छोड़कर परोपकार में लीन होने की क्षमता प्राप्त करता है।
परांपकार एक आवश्यक गुण है। परोपकार से क्या लाभ है, यह भी देखना आवश्यक है।
परोपकार से व्यक्ति को लाभ यह होता है कि मनुष्य की आत्मा का विस्तार होता है और वह दूसरों की सहानुभूति प्राप्त करता है।
संसार के सभी कार्य सुख और शान्ति के लिए होते हैं। ये दो बातें अनुभवगम्य हैं। अतः इनसे मानसिक आनन्द प्राप्त होता है।
इसमें आध्यात्मिक भावना का विकास होता है। इसमें इस कार्य से आस्तिक भावना का जागरण और शुद्धिकरण होता है।
दूसरा लाभ यह है कि समाज में दीन - हीन लोगों को भी जीवित रहने का अवसर मिलता है। प्रतिभासंपन्न व्यक्तियों को उचित प्रोत्साहन मिलता है और उसके समाज - कल्याण के कई कार्य होते हैं।
तीसरा लाभ यह है कि परोपकारी व्यक्ति को समाज में सम्मान प्राप्त होता है।
चौथा लाभ यह है कि इसमें ऐसे - ऐसे सामूहिक कार्य होते हैं जिन्हें समाज का जीवन सरल और सुगम हो जाता है।
इसका प्रभाव यह होता है कि समाज में शान्ति का वातावरण बढ़ता जाता है। सामाजिक कार्य अधिक सरलता से चलते हैं। दुकान विरोध की भावना घटती जाती है और आपस में प्रेम - भाव उठता है।
लोगों में ईश्वर के प्रति विश्वास बढ़ता है और उदात्त भावनाओं का विकास होता है।
परोपकार का प्रभाव दोनों ओर पड़ता है। परोपकारी को सात्विक आनन्द प्राप्त होता है और उपकृत में कृतज्ञता आती है और वह भी परोपकारी बनने की कोशिश करता है।
परोपकार के प्रभाव से संसार में शांति का वातावरण बनता है। संसार में साधु - पुरुषों का विशेष सम्मान होता है। यह साधु पुरूप परोपकार के द्वारा ही परखे जाते हैं।
नदी का महत्व इसलिए है कि वह स्वयं जल नहीं पीती वरन दूसरों को उपकार करती है।
वृक्षों की महत्ता इसलिए है कि वे अपने फल स्वयं न खाकर दूसरों को देते हैं।
परोपकार स्व निरपेक्ष कार्य होता है। इसके लिए मनुष्य में ऐसी भावना की आवश्यकता है जिसे सहानुभूति कहा जाता है।
दूसरों के दुःख वेदना से द्रवित होकर मनुष्य परोपकार करता है।
गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है -
'परहित सरिस धर्म “in भाई, पर - सं समंति अधर्म।। '
एक महात्मा की यह घोषणा है कि परोपकार ही संसार में महापरि धर्म है और दूसरों को कष्ट देना ही सबसे बड़ी नीच है।
अब यदि कहा जाए कि अन्यायी को दण्ड देने में उसे पीड़ा होती है तो क्या अत्याचार को दण्ड न दिया जाएगा?
इस प्रश्न का उत्तर यह है कि अत्यंतारी, तो सद दण्डनीय है, उसके ऊपर दया करने का अर्थ है अत्याचार को बढ़ावा देना, अत: उसे दण्ड देना परोपकार है।
वह जब तक अत्याचार करेगा तब तक वह बहुत से प्राणियों को दुःख देगा और दण्ड से, समझा - बुझाकर या किसी भी प्रकार से दुष्कर्म से रोका जा सके तो उसके परिणामस्वरूप व्यक्ति व्यक्ति से बच जाएँ।
अतः एक आदमी को साधारण कष्ट देने से यदि कई व्यक्ति कप्ट से बच जायँ तो वह टाइपानार से महान उपकार है।
क्लस्टर और सज्जन लोग स्व के लिए सम्पत्ति का संचय नहीं करते बल्कि परोपकार के लिए ही।
इसी बात को संस्कृत में कहा गया है कि ' परांपकाराय सतां विभूतयः ' अर्थात वंचकों की विभूतियाँ तो परोपकार के लिए ही होती है।
ऐसे - ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ पर परोपकार के लिए लोगों ने अपने प्राण तक निछावर कर रहे हैं। अतः परोपकार एक आवश्यक गुण है।
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परोपकार पर निबंध के अंतर्गत हमने वर्तमान युग में लोगो के ह्रदय में दुसरो के प्रति त्याग और उपकार की भावना का गहरा विश्लेसन किया.
अंततः हमें यह ज्ञात हुआ की विश्व में अभी भी परोपकार की भावना ज्वलंत है. जिस दिन ये भावना मृत हो गयी उस दिन सृष्टि का अंत सुनिश्चित है.
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