विश्व शांति पर निबंध एक ऐसा विषय जिसे हमेशा नजरंदाज किया गया। लेकिन आज हम विश्व शांति पर बात करेंगे और इसे गंभीरता से समझेंगे।
विश्व शांति पर निबंध | Essay on peace
विश्व शांति की परिभाषा प्रायः युद्ध के अभाव के रूप में दी जाती है। यह परिभाषा कठिन तो नहीं है लेकिन भ्रामक तो है।
सामान्यतः हम युद्ध को देशों के मध्य हथियार बन्द संघर्ष समझते हैं।
वैसे रवांडा अथवा बोस्निया में जो हुआ वह इस तरह का युद्ध नहीं था।
किन्तु यह एक प्रकार से विश्व शांति का अवहेलना अथवा स्थगन तो था ही।
वैसे प्रत्येक युद्ध शांति के अभाव की ओर जाता है।
किन्तु शांति का प्रत्येक अभाव युद्ध का रूप ले यह आवश्यक नहीं है।
शांति की परिभाषा देने में दूसरा कदम होगा इस युद्ध , दंगा , नरसंहार , हत्या अथवा सामान्य शारीरिक प्रहार सहित सभी प्रकार के हिंसक संघर्ष निश्चित रूप से पहले से बेहतर है।
हिंसा अक्सर समाज की मूल संरचना में समायी हुई है।
ऐसी सामाजिक संस्थाएँ तणा प्रथाएँ जो जाति , वर्ग अथवा लिंग के आधार पर विषमता की खाइयों को और गहरा करती हैं , किसी की क्षति सूक्ष्म तथा अस्पष्ट तरीके से भी कर सकती है।
जाति , वर्ग या लिंग पर आधृत इस स्तरीकरण को यदि शोषित वर्ग की और कोई भी चुनौती मिलती है तो इससे भी संघर्ष तथा हिंसा उत्पन्न हो सकती है।
इस तरह की ' संरचनात्मक हिंसा ' के बड़े पैमाने पर कुपरिणाम हो सकते हैं।
हम वैसी हिंसा से उत्पन्न कुछ टोस उदाहरण यथा जाति भेद , वर्गभेद पितृसत्ता उपनिवेशवाद , नस्लवाद तथा साम्प्रदायिकता हैं।
वैसे संयुक्त राष्ट्रसंघ ने विश्व शांति के क्षेत्र में कई अहम उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं , किन्तु शांति के प्रति खतरे को रोकने तथा खत्म करने में वह विफल ही रहा है।
इसके बदले दबंग राष्ट्रों ने अपनी संप्रभुता का प्रभावपूर्ण प्रदर्शन किया है तथा क्षेत्रीय सत्ता संरचना और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को भी अपनी प्राथमिकताओं एवं धारणाओं के आधार पर बदलना चाहा है।
इसके लिए उन्होंने सीधी सैनिक कार्रवाई का भी सहारा लिया है एवं विदेशी क्षेत्रों पर आधिपत्य जमा लिया है।
ऐसे आचरण का ज्वलंत मिसाल अफगानिस्तान तथा इराक में अमेरिका का ताजा दखलअंदाजी है।
इस युद्ध में बहुत से मासूमों को अपनी जानें गंवानी पड़ी।
आतंकवाद को उद्भव का एक वजह आक्रमक राष्ट्रों का स्वार्थपूर्ण आचरण भी है।
अक्सर आधुनिक हथियार तथा विकसित तकनीक का दक्ष तथा निर्मम प्रयोग करके आतंकवादी इन दिनों शति के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है।
11 सितम्बर 2001 को इस्लामी आतंकवादियों द्वारा अमेरिका के न्यूयार्क स्थित विश्व व्यापार केन्द्र का विनष्ट किया जाना इन आतंकवादी वास्तविकताओं की अभिव्यक्ति है।
इन ताकतों द्वारा अति विध्वंसक जैविक रासायनिक या परमाण्विक हथियारों के प्रयोग की आशंका दहला देने वाली है।
वैश्विक समुदाय धौंस जमाने वाली शक्तियों की लालच एवं आतंकवादियों की गुरिल्ला युक्तियाँ को रोकने में विफल रहा है।
वह प्रायः नस्ल - संहार अर्थात किसी संपूर्ण जनसमूह के व्यवस्थित नरसंहार का मूक दर्शक बना रहता है।
विशेष तौर पर रवांडा में स्पष्टतः दिखाई दे रहा है।
विश्व में शांति स्थापित करने की रणनीति
पुरे विश्व में शांति स्थापित करने तथा बनाये रखने हेतु विभिन्न रणनीतियाँ अपनाई गयी हैं।
इन रणनीतियों को आकार देने में तीन प्रमुख विचारों ने सहायता पहुँचायी है।
प्रथम तरीका राष्ट्रों को प्रमुख स्थान देता है । इनकी संप्रभुता का अदव करता है तथा इनके मध्य प्रतिद्वन्द्विता के उपयुक्त प्रबन्धन एवं संघर्ष की आशंका का शमन सत्ता - संतुलन की पारस्परिक व्यवस्था के जरिए करनी होती है।
दूसरा तरीका भी राष्ट्रों की गहराई तक जमी आपसी प्रतिद्वंद्विता की प्रकृति को स्वीकार करता है।
किन्तु इसका और सकारात्मक उपस्थिति तथा परस्पर निर्भरता की संभावनाओं पर है।
यह विभिन्न देशों मध्य विकासमान सामाजिक , आर्थिक सहयोग को रेखांकित करता है।
इससे आशा की जाती है कि वैसे सहयोग राष्ट्र की संप्रभुता को नरम करेंगे तथा अन्तर्राष्ट्रीय समझदारी को प्रोत्साहन करेगी।
परिणाम होगा कि वैश्विक संघर्ष कम होंगे जिससे शांति की बेहतर संभावनाएँ बनेगी।
इस पद्धति के पैरोकारों द्वारा दिया जाने वाला एक मिसाल द्वितीय महायुद्ध के पश्चात के यूरोप का है जो आर्थिक एकीकरण से राजनीतिक एकीकरण की ओर बढ़ता गया है।
तीसरी पद्धति राष्ट्र पर आधृत व्यवस्था को मानव इतिहास की समाप्त प्राय अवस्था मानती है।
यह अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का मनाचित्र बनाती है तथा वैश्विक समुदाय के अभ्युदय अवस्था मानती है।
वैसे समुदाय के बीच राष्ट्रीय सीमाओं के आर पार बढ़ती आपसी अंत : क्रिया तथा संघर्षों में दिखाई देता है जिसमें बहुराष्ट्रीय निगम तथा जनान्दोलन जैसे गैर सरकारी कर्त्ता सम्मिलित है।
इस तरीके के प्रस्तावक तथा हिमायती तर्क देते हैं कि वैश्विकरण की जारी प्रक्रिया राष्ट्रों की पहल से ही घट गई प्रधानता तथा संप्रभुता को और अधिक क्षीण कर रही है जिसके परिणामस्वरूप विश्व शांति बनाये रखने की परिस्थिति तैयार हो रही है।
निष्कर्ष : विश्व शांति पर हिंदी निबंध
निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र तीनों ही पद्धतियों के प्रमुख तत्वों को साकार कर सकता है ।
सुरक्षा परिषद , जो स्थायी सदस्यता तथा पाँच प्रमुख राष्ट्रों को निषेधाधिकार देता है ।
प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय श्रेणीबद्धता को ही व्यक्त करता है । आर्थिक - सामाजिक परिषद् कई क्षेत्रों में राष्ट्रों के मध्य सहयोग को बढ़ावा देता है ।
मानवाधिकार आयोग अंतर्राष्ट्रीय मानदण्डों के आकार देना तथा क्रियान्वित करने के ईक्षुक हैं।
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