बेरोजगारी की समस्या पर निबंध | Essay On Unemployment In Hindi

बेरोजगारी पर निबंध में हम चर्चा करेंगे वर्तमान समय में भारत में पसरी हुई बेरोजगारी की समस्या और उससे फैली  गरीबी के बारे में . क्योकि बेरोजगारी एक देशव्यापी समस्या बन चुकी है. 

अतएव इसका समाधान निकलना भी अति आवश्यक है. लोग बेकारी के प्रति जागरूक हो सके इसके लिए बेरोजगारी पर यह निबंध सटीक साबित हो सकता है.

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बेरोजगारी की समस्या | Hindi Essay On Unemployment

कलिकाल वर्णन के प्रसंग में गोस्वामी तुलसीदास ने अपने समय की बेरोजगारी का वर्णन करते हुए लिखा है 

खेती न किसान को भिखारी को न भीख बलि बनिक को बनिज न चाकर को चाकरी । 

जीविकाविहीन लोक सीद्यमान साच बस , कहँ एक एकन सौं कहाँ जाई , का करी ? 

आज अपने देश की स्थिति इससे बहुत भिन्न नहीं है । बेरोजगारी की समस्या असुरक्षा की भाँति नित्य मुख फैलाती चली जा रही है और समाधान के सारे उपाय ' तातल सैकत वारि विन्दु सम ' बनते जा रहे हैं । 

आज प्रत्येक क्षेत्र के लोग किसी - न - किसी रूप में इस समस्या से परेशान हैं । कोई बेरोजगारी से पीड़ित है , तो कोई आतंकित । सभी जिम्मेदार राजनीतिक दल और नेता इस समस्या पर गम्भीरतापूर्वक विचार रहे हैं ताकि स्थिति को विस्फोटक बनने से पहले सम्भाला जाय । 


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अपने देश में बेरोजगारी की समस्या दो प्रकार की है- 

( 1 ) अशिक्षित बेरोजगारों की समस्या और 

( 2 ) शिक्षित बेरोजगारों की समस्या । 


शिक्षित बेरोजगार भी दो प्रकार के हैं - 

( 1 ) तकनीकी शिक्षा प्राप्त बरोजगार और 

( 2 ) गैर - तकनीकी शिक्षा प्राप्त बेरोजगार । 


इन सबकी समस्याएँ और परिस्थितियाँ भिन्न - भिन्न हैं । समानता है तो केवल एक कि ये सभी बेरोजगार हैं । 

इनकं हाथ का काम नहीं मिल रहा है , जिससे ये अपना और अपने परिवार का ठीक से भरण - पोषण कर सको अशिक्षित बेरोजगार सबसे निरीह प्राणी है । 

किसी भी बड़े शहर के किसी चौराहे पर खड़े हो जाइए । आपको मैले - कुचैलें , फट , अधफट कपड़े पहने लोगों की एक छोटी सी भीड़ मिलेगी । यह भीड़ शहर के आस - पास के गाँवों से आती है , दैनिक मजदूरी पर श्रम बेचने। 

कोई निश्चित नहीं है कि उसे प्रतिदिन काम मिल जाएगा । यदि मिल भी जाय तो वह इतना कभी नहीं कमा पाता कि दुःख या हर्ष के अवसर पर अथवा बीमारी में आवश्यकता भर खर्च कर सके । फिर जिस दिन बीमार पड़ा , रोजी समाप्त , रांटी समाप्त । 

देहात में काम के मौसम पर देहात में मजदूरी नहीं तो शहर का आसरा ! वर्तमान से लेकर भविष्य तक सारा अनिश्चित ! इसीलिए अशिक्षित बेरोजगार बेहद निरीह प्राणी है । 

वह शारीरिक परिश्रम वाला कोई भी काम चाहता है । मगर अनिश्चित रोजगार उसके लिए बंकारी के बराबर होता है। 

दूसरा वर्ग शिक्षित बेरोजगारों का है । इस वर्ग की कठिनाई यह है कि यह पढ़ - लिखकर श्रम का निरादर करना सीख जाता है । थाई सम्मान कं अहम का शिकार हो जाता है और नौकरी के अतिरिक्त कोई भी दूसरा काम करना हेय समझता है ।

 इस वर्ग की बेरोजगारी की समस्या का अर्थ है - नौकरी का न मिलना । वह नौकरी चाहता है , चाय - पान सिनेमा और सूट चाहता है , अगर हो सके तो बंगला और कार भी । इस वर्ग की समस्या ही सर्वाधिक भयानक है । 

तकनीकी शिक्षा प्राप्त शिक्षित चाहता है कि शिक्षा समाप्त होती ही अच्छी नौकरी , अनिवार्यतः मिलनी चाहिए । ये तकनीकी शिक्षावाले लोग इतने बंकार हो जाते हैं कि किसी दूसरे काम के न तो लायक रहते हैं और न उनमें इतना आत्मबल रहता है कि वे कोई रिस्क लेकरदूसरा काम करें । 

रहे गैर - तकनीकी शिक्षा प्राप्त युवक , तो इनमें मुख्यतः कला , वाणिज्य , शिक्षा आदि विषयों से बी ० ए , एम ० ए ० करने वाले लोग होते हैं । इनकी तो इस औद्योगिक युग में कोई पूछ ही नहीं है ये या तो अध्यापकी के चाहक होते हैं या तो किरानीगिरी के । 

बहुत हुआ तो कुछ प्रतिभाशाली प्रशासनिक संवाओं में लगे । मगर जिस अनुपात में ये बी ० ए ० , एम ० ए ० पैदा हो रहे हैं उस अनुपात में नौकरियों के अवसर ऊँट के मुँह में जीरा का फोरन के बराबर है । तब खाली हाथ , खाली मन क्या करें । बुराइयों , गलत कार्यों में संलग्न ही तो हों ! 

ये आवाज लगाते हैं - हमें रोजी की गारण्टी दो ! हमें भाषण नहीं रोजी दो । और . नहीं तो बेरोजगारी भत्ता दो ! अर्थात् बिना कमाए भोजन मगर दोष इनका नहीं है । दोष हमारी शिक्षा व्यवस्था का है । दोष हमारी सरकार की योजनाओं का है । 

किसी भी स्वतन्त्र देश में कोई भी सरकार सभी शिक्षितों को नौकरी नहीं दे सकती , यह एक ज्वलन्त सत्य है । अतः शिक्षा के साथ नौकरी को जोड़कर युवकों को पर मुखापेक्षी बनाए चलने की परम्परा गलत है ।


बेरोजगारी पर निबंध (700 शब्द) | Unemployment Essay In Hindi

बेरोजगारी की समस्या इस युग की प्रधान समस्याओं में से एक है। थोड़ी-बहुत यह समस्या संसार के सभी देशों में है। 

अमेरिका, इंगलैण्ड और रूस-जैसे देश भी इसके शिकंजे से बाहर नहीं हैं। 

वैसे विकासशील देशों के सर पर इस समस्या का दानवी आतंक बहुत ज्यादा है, जो उनकी वर्षों की पराधीनता के फलस्वरूप उत्पन्न हुई परिस्थतियों एवं उनकी असंतुलित आबादी वृद्धि के कारण उसके समूचे विकास को खाये जा रहा है। 

इस समस्या को जन्म देनेवाले कारण तो अनेक हैं, पर सबसे बड़ा कारण है आबादी में तेज रफ्तार से होनेवाली वृद्धि और उसके कारण काम और काम करनेवाले हाथों की संख्या के बीच पोर आनुपातिक असंतुलन। 

जाहिर है कि यह समस्या उन देशों के सामने उतनी ही विकराल होकर खड़ी है, जिनकी आबादी जितनी ही बड़ी है और जहाँ आबादी की वृद्धि दर वस्तु उत्पादन की तुलना में जितनी ही अधिक असंतुलित है। 

इन दोनों ही दृष्टियों से हमारा देश भारत विश्व में पहले नम्बर पर है।

कोई कह सकता है कि आबादी तो चीन की दुनिया में भारत से भी ज्यादा है। 

बात सही है, पर यह भी सही है कि चीन ने अपने देश के विकास कार्यों एवं उत्पादन कार्यों के साथ अपने देश की आबादी की वृद्धि को जिस हद तक एवं जिस सफलता के साथ जोड़ दिया है उस हद तक एवं उस सफलता के साथ हमारे देश में यह कार्य नहीं हो सका है। 

एक लोकतांत्रिक पद्धति का देश होने के नाते हमारी कुछ सीमाएँ भी इस क्षेत्र में बाधक बनती हैं। 

पिछले दस वर्षों के आँकड़े बतलाते हैं कि हमारे देश में आबादी बुद्धि की दर लगभग 25% रही, जो उत्पादन वृद्धि की दर से लगभग ढाई गुनी ज्यादा है।

अपने देश में आबादी की समस्या व्यापक और गम्भीर है। गरीबी की सहचरी है। 

गरीबी बेरोजगारी को जन्म देती है और बेरोजगारी गरीबी को फिर ये दोनों मिलकर पूरे समाज की विकासात्मक प्रवृत्ति को ही समाप्त कर देती हैं। 

इस देश में अशिक्षित तो बेकार हैं ही, शिक्षित भी बेकार हैं। शिक्षितों में बेकारों की संख्या प्रतिवर्ष 25-30 लाख बढ़ जाती है। 

फिर ये शिक्षित केवल कला-स्नातक एवं विज्ञान-स्नातक होते तो उतनी चित्ता की बात नहीं होती, डॉक्टर और इंजीनियर भी इन शिक्षित बेकारों में शामिल हैं। 

शिक्षित-अशिक्षितों की बेरोजगारी की भारी फौज शहरों में असामाजिक तत्त्वों में बदल रही है, असमय मुरझा रही है और कभी-कभी आत्महत्या तक की शरण ले रही है। 

अशिक्षित एवं बेकार कृषक तथा कृपक मजदूर हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बोझ बने हुए हैं।

किसान भी है बेरोजगार 

कृषि योग्य भूमि का विस्तार नहीं के बराबर हुआ है। 

जो कृषि योग्य भूमि है, वह भी सिचाई सुविधाओं के अभाव, मानसून की अस्त-व्यस्तता, अतिवृष्टि और अनावृष्टि के छक्कों, परम्परागत कृषि-साधनों, वैज्ञानिक उपकरणों, उत्तम बीज-खाद आदि के भाव के कारण अपनी सीमित उत्पादकता में ही रह जाती है। 

वर्ष के छह महीनों में हमारे किसान निठल्ले बैठे रहते हैं। कृषि का पिछड़ापन भी हमार देश में फैलती बेरोजगारी का एक प्रबल कारण है।

उद्योगों को प्रोत्साहन न देना है बेरोजगारी की बड़ी वजह 

बेरोजगारी की समस्या को बनाये रखने में देश की सदोष अर्थ-व्यवस्था और लघु, कुटीर एवं माध्यम उद्योगों का भी गहरा हाथ है। 

लघु उद्यमियों को सही ढंग से प्रोत्साहन नहीं मिलता है। 

काला घन पूरे समाज में इस प्रकार व्याप्त है कि वह उत्पादन के अवसरों को बढ़ने ही नहीं देता। 

कोई भी चीज किसी भी कीमत पर क्यों न मिले, उसके खरीदार बाजार में तैयार हैं। 

इन सारी समस्याओं के समाधान पर ही बेरोजगारी को समस्या का समाधान निर्भर करता है

औद्योगिक क्षेत्र में समुचित विकास के अभाव ने भी बेरोजगारी को जन्म दिया है। 

औद्योगिक क्रान्ति के बाद दुनिया के विकसित देशों में उद्योग-धन्धों का व्यापक बेरोजगारी की समस्या से निपटने में काफी मदद मिली। 

अपने देश में अंगरेजी हुकूमत प्रसार हुआ, फलतः रोजगार के अवसरों में भी काफी वृद्धि हुई और उससे वहाँ ने इस दिशा में कोई उत्साह नहीं दिखलाया। 

आजादी के बाद पंडित नेहरू ने अवश्य ही सराहनीय प्रयास किये, पर इस विशाल देश में कल-कारखानों के विस्तार की जो संभावनाएं हैं उनके अनुपात में अब तक का सारा विस्तार पर्याप्त नहीं माना जा सकता है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बुनियादी तालीम पर बल देते हुए कुटीर उद्योगो को इस देश के लिए परम उपयोगी बतलाया था। 

इसके लिए योजनाएँ तो काफी बनी पर उनपर कारगर रूप से अमल नहीं किया जा सका। 

इस देश के गिरते नैतिक स्तर और श्रम एवं ईमानदारी की प्रवृत्ति के ह्रास ने इन मामले में कोई में खाज का काम किया।

भारत सरकार ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण तथा विभिन्न कार्यक्रमों जैसे 20 सूत्री कार्यक्रम, नया ग्रामीण नियोजन कार्यक्रम, युवकों को स्वनियोजन के लिए दिया जानेवाला प्रशिक्षण कार्य आदि के द्वारा इस दिशा में काफी सराहनीय प्रयास किये हैं। 

परन्तु ये व्यवस्थाएँ एवं प्रयास सराहनीय होते हुए भी अपेक्षित प्रभाव नहीं डाल सके हैं । 

बेरोजगारी की समस्या का कारगर समाधान ढूंढने के लिए इसके सभी पक्षों पर अच्छी तरह गौर करना होगा। 

इसके लिए एक ओर शिक्षा को रोजगारोन्मुख और स्वयं प्रतिनियुक्ति (Self employment) चाहने वाले लघु उद्यमियों को कठोर निगरानी में हर संभव प्रोत्साहन देना होगा वहाँ देश में विभिन्न भागों के नैसर्गिक साधनों के अनुरूप गृह एवं कुटीर उद्योगों का जाल भी फैलाना होगा। 

तभी इस विशाल देश में बेरोजगारी की समस्या कारगर समाधान सम्भव हो सकेगा।

चलते-चलते :

प्रस्तुत बेरोजगारी पर निबंध(Essay On Unemployment In Hindi) में आपने जाना की किस प्रकार से हमारा भारत वर्ष बेरोजगारी की समस्या से परेशान है और लोग भी नौकरी को व्यवसाय की तुलना में अत्यधिक महत्व दे रहे है.
ऐसे में बेरोजगारी की समस्या का उत्तपन होना स्वाभाविक है.

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