भारतीय किसान सदा से ही मेहनती रहा है, ऐसे में यदि हम अपने निबंध की श्रृंखला में भारतीय किसान पर निबंध को शामिल न करे तो ये उनका अपमान ही होगा।
भारतीय किसान पर निबंध
आजादी के पूर्व भारतीय किसान सरकार और जमींदार के दो पाटों के बीच पिसते थे। जमींदारी का इतिहास कृषकों के शोषण का इतिहास है।
आजादी के बाद विचौलिये के रुप में कार्यरत जमींदारों का खात्मा हो गया।
यह एक अन्यन्त सुखद और महत्वपूर्ण निर्णय हुआ जिसकी जितनी भी प्रशांसा की जाय कम है।
जमींदारी युग से त्रस्त थे किसान
जमींदारी युग में लगान देना , बेगार करना , मुफ्त में साग - सब्जी देना , नजराना देना और अन्ततः जमीन छिन्न जाने के भय से त्रस्त रहना किसानों की नियति थी।
इसके अतिरिक्त जमींदारों की ओर से खेती को समुन्नत करने या सुरक्षित करने हेतु किसी प्रकार की सुविधा की व्यवस्था नहीं की जाती थी।
किसान पूर्णतः भाग्यवादी थे और शोषित होना उनकी नियति थी।
जमींदार और जमींदार के अमले - प्याले जो शोषण करते थे , वे तो करते ही थे सरकारी कर्मचारी भी कम नहीं करते थे।
सब मिलाकर स्थिति यही थी कि बेचारा किसान जीवन भर किसान बने रहने के लिए संघर्ष करता रहता था।
इस संघर्ष में उसकी जिन्दगी बीत जाती थी मगर सुख - सुविधा कभी नसीब नहीं होती थी।
विवाह , श्राद्ध , बीमारी आदि अच्छे - बुरे अवसरों पर कर्ज लेना और जीवन भर कर्ज सधाना या जमीन बेचना उसकी नियति बन गयी थी।
इन्हीं सारी परिस्थितियों के कारण किसानों की स्थिति सदा करुण बनी रही।
हमारे साहित्यकारों ने किसानों के ऐसे जीवन को वाणी देने तथा उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त करने की चेष्टा की है।
आजादी के बाद बदले है हालात
आजादी के बाद किसानों की स्थिति बदल गयी है। तबसे विचौलियों के शोषण से पूर्णतः मुक्ति मिल गयी।
इसके बाद सरकार ने किसानों की उन्नति के लिए सामान्य स्तर पर तथा विशेष स्तर पर अनेक उपाय किये हैं।
सामान्य स्तर पर जहाँ - तहाँ आवश्यकतानुसार बाढ़ से रक्षा के लिए बाँध तथा सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण किया गया है।
कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले इसके लिए सरकार एक ओर समय - समय पर मूल्य नीति के अन्तर्गत मूल्यों का निर्धारण करती है और दूसरी ओर कृषि उत्पादन बाजार समिति के माध्यम से किसानों के उत्पादनों को खरीदती है।
अब व्यापारी वर्ग मनमानी कीमत पर किसानों को सामान बेचने के लिए विवश नहीं कर सकता है।
कृषि उपकरणों की बढ़ गयी है उपलब्धता
विशेष स्तर पर जरुरतमंद किसानों के लिए सिंचाई साधनों जैसे पम्प आदि अच्छे खाद - बीच , ऋण - सुविधा आदि की व्यवस्था की गयी है ताकि किसान आर्थिक तंगी से परेशान न हों , कृषि कार्य से विमुख न हो।
हमारे देश के कृषि वैज्ञानिक एक ओर फसलों की अधिक वजन देने वाली किस्मों के अनुसंधान में लगे हैं तो दूसरी ओर इन उन्नत किस्मों को लगाने की विधियाँ बताने के लिए प्रदर्शनी , किसान मेला आदि माध्यमों का उपयोग कर कृषकों को कृषि - शिक्षा दे रहे हैं।
आकाशवाणी , दूरदर्शन , समाचार पत्र द्वारा अलग से कृषि विभाग उन्नत पौधों की किस्में उपलब्ध कराता है।
इस तरह हम पाते हैं कि एक ओर कृषकों के लिए सरकार लगातार कृषि शिक्षा की व्यवस्था कर रही है तो दूसरी ओर अपने बैंकों के माध्यम से आर्थिक सुविधा प्रदान कर रही है।
कृषि पर आधारित व्यवसाय और तकनीकों के क्षेत्र में अधिक से अधिक सहयोग के अवसर उपस्थित किये जा रहे हैं।
फलतः अब हम दावे के साथ कह सकते हैं कि भारतीय किसान आजादी के पहले जैसा निरीह नहीं है।
समय - समय पर किसान संगठित होकर भी अपने अधिकारों के प्रति सजगता प्रकट करते हैं।
वर्तमान को देखकर हम कृषक जीवन के क्रमशः आलोक पूर्ण होते भविष्य की कल्पना कर सकते हैं।
चलते-चलते :
भारतीय किसान पर निबंध के अंतर्गत आपने जाना भारतीय किसानो की समस्या एवं इतिहास में उनके साथ जमींदारो एवं उनके चमचो द्वारा किये जाने वाले दुर्व्यवहार के बारे में।
अभी भी भारतीय किसानो की स्थिति बेहतर नहीं है। निश्चित रूप से सरकार को अभी इस क्षेत्र में अभी और भी काम करने होंगे ताकि किसानो बेहतर सुविधाए मुहैया कराइ जा सके।
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