ईद पर हिंदी निबंध | Essay On Eid In Hindi

ईद का त्यौहार सभी मुस्लमान भाइयो के चेहरे पर खुशियाँ लाता है। 

निश्चित रूप से ईद पर निबंध के अंतर्गत दी गयी जानकारियाँ आपकी ईद के त्यौहार से सम्बंधित सभी जिज्ञासाओं को शांत कर देगी। 

ईद पर निबंध | Hindi essay on Eid

पर्व - त्योहारों का संबंध जातीय जीवन , संस्कृति और धर्मभावना से होता है। 

जीवन के उल्लास - विषाद आदि सभी प्रकार की भावनाएँ पर्व-त्योहारों के माध्यम से व्यक्त होती हैं। 

जिस प्रकार होली - दीपावली हिन्दुओं के लिए आनन्द - उल्लास का त्योहार है , क्रिसमस ईसाइयों के लिए प्रसन्नता का पर्व है , उसी प्रकार ईद मुसलमानों के लिए आनन्द - उल्लास का त्योहार है।


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ईद के त्यौहार का मतलब 

ईद का पूरा नाम है - ईद - उल - फितर। ईद का अर्थ होता है - सामयिक स्थिति - परिवर्तन और फितर का अर्थ होता है स्वेच्छया दान। 

अतः ईद - उल - फितर हुआ समय - परिवर्तन के एक विशेष अवसर पर स्वेच्छा से दान देना। 

स्पष्टतः यह स्वेच्छा - दान प्रसन्नता , अपनत्व और सद्भाव पर आधारित होता है, किसी वाध्यता - विवशता पर नहीं। 

इसीलिए ईद के अवसर पर लोग एक - दूसरे को खिलाते - पिलाते हैं , नये वस्त्र पहनते हैं और गरीबों को अपनी क्षमता के अनुसार दान देते हैं। 

ईद क्यों मनाया जाता है ?

ईद के त्योहार का संबंध मुसलमान धर्म के पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब के साथ जुड़ा हुआ है। 

कहते हैं कि एक बार अपने अनुयायियों की भलाई और सत्य की महत्ता का प्रतिष्ठापन करने के लिए उन्होंने एक महीने का उपवास किया। 

उसी घटना की याद में उनके अनुयायी अब तक एक माह का उपवास या रोजा रखते हैं। इसे ही रमजान कहते हैं। 

इसी रमजान या उपवास की अवधि में उन्हें कुरान - शरीफ का ज्ञान हुआ था, 

जैसे अपने यहाँ भगवान गौतम बुद्ध को तपस्या करते हुए ज्ञान प्राप्त हुआ था। 

इस तरह कुरान - शरीफ की प्रेरणा कहें या उत्पत्ति की खुशी में रमजान की समाप्ति के बाद चाँद निकलने के दूसरे दिन ईद का त्योहार मनाया जाता है। 

खुशियाँ बांटते है लोग

त्योहार के लिए पहले से ही तैयारियां की जाती हैं। नये वस्त्र बनवाए जाते हैं । मिठाइयाँ खरीदी जाती हैं , सेवइयाँ बनवाई जाती हैं। 

ईद के दिन लोग झुंड - के - झुंड किसी सार्वजनिक स्थान में या किसी मस्जिद में एकत्र होते हैं। वहाँ सामूहिक रूप से नमाज पढ़ी जाती है। 

नमाज के बाद उनके धर्मोपदेशक उन्हें उपदेश देते हैं जिसमें इस्लाम धर्म एवं दान की महत्ता बताई जाती है। 

उपदंश का नैतिक प्रभाव नमाज की पवित्रता और महीने भर के दैनिक उपवास के कारण प्रायः हर व्यक्ति का मन पवित्र और व्यवहार सौम्य हो जाता है। 

अत : उपदेश के बाद लोग ईद मुबारक कहकर एक दूसरे के गले मिलते हैं। आपसी दुर्भाव भूलकर पारस्परिक प्रेम और अपनत्व प्रकट करते हैं। 

लगता है प्रेम और सद्भाव का सागर ही उमड़ पड़ा है। 

साल भर की अवधि में धीरे - धीरे क्षीण और पुराना हो जानेवाला प्रेम संबंध फिर से नया हो जाता है। इसके बाद ईद की प्रसन्नता का असली रूप प्रकट होता है। 

बच्चों में होता है विशेष उत्साह

बच्चों की टोली उत्साह में भरकर मेले में आती है। रंग - बिरंगे कपड़े तथा सिर पर रंगीन टोपियाँ पहने बच्चे मेले में आकर तरह - तरह की चीजें खरीदते हैं , खाते और एक दूसरे को खिलाकर प्रसन्नता अनुभव करते हैं। 

कथा - सम्राट प्रेमचंद जी ने अपनी कहानी " ईदगाह " में इसका बड़ा ही मार्मिक और जीवन्त चित्रण किया है। उसे पढ़कर ईद का चित्र - मानस पटल पर अंकित हो जाता है। 

इंदगाह से लौटने के बाद भी दिन भर " ईद मुबारक " का माहौल बना रहता है। लोग एक - दूसरे का मुंह मीठा कराते हैं । पड़ोसियों को गोज देते हैं , और घर आए मित्र को मिठाइयाँ तथा सेवइयाँ खिलाते हैं । 

सचमुच यह प्रसन्नता , उल्लास और आपसी मेल - मिलाप का जीवन्त पर्व है। 


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हिन्दू भी बनते है सहभागी

मुसलमान भाइयों की इस प्रसन्नता में हिन्दू भाई भी हाथ बँटाते हैं और वे भी उनकी प्रसन्नता में सहभागी बनते हैं। 

अत : ऐसे पर्वो का जातीय ही नहीं राष्ट्रीय एकता और सद्भाव की दृष्टि से भी महत्त्व है। 

विशेषकर भारत - जैसे धर्मनिरपेक्ष देश के लिए अन्त में ईद की खुशी में अपनी खुशी मिलाते हुए हम नजीर अकबराबादी के शब्दों में कहना चाहेंगे, 

ऐसी न शबे - बरात , न बकरीद की खुशी। 

जैसे हर एक दिल में इस ईद की खुशी । 


ईद के त्यौहार पर निबंध | Eid Essay In Hindi

इसलाम धर्म में आदम और हव्वा को इनसान का पुरखा माना गया है। आदम पुरुष था और हव्वा स्त्री। 

दोनों जन्नत (स्वर्ग) में रहते थे। खुदा ने दोनों को दुनिया बनाते समय बता दिया था कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है। 

उन्हें एक खास फल को खाने से मना किया था, पर जैसा कि मनुष्य का स्वभाव होता है, मना किए गए काम को करने के लिए मन ललचाता है।

आदम-हव्वा ने भी वही किया। दोनों ने उस फल का स्वाद चख लिया। उनके इस काम से खुदा उनसे नाराज हो गया।

फिर क्या था, उन्होंने दोनों को जन्नत से निकाल दिया। इसके बाद उन्हें दो दिशाओं में अलग-अलग करके भटकने के लिए छोड़ दिया। 

इस तरह वे एक दूसरे को पाने के लिए वर्षों भटकते रहे। वे अपनी गलती पर रोते रहे। उन्होंने अपनी गलतियों के लिए खुदा से माफी माँगी।

अंत में, खुदा ने उनकी प्रार्थना सुन ली। खुदा ने दोनों को आपस में मिला दिया। उन्होंने खुदा की मेहरबानियों को खुशी-खुशी कुबूल किया। 

दोनों ने खुदा के अहसान के प्रति अपना आभार जताया। इस तरह दुनिया के पहले स्त्री-पुरुष का मिलन हो गया। इसी खुशी में मुसलमान लोग हर साल खुदा की इबादत (पूजा) करते हैं। 

खुदा के प्रति उनकी मेहरबानियों के लिए वे लोग शुक्रिया अदा करते हैं। इसी खुशी के दिन को 'इंद' के रूप में मनाया जाता है। 

ईद का पर्व रमजान के ठीक बादवाले महीने में मनाया जाता है। रमजान का महीना मुसलमानों के लिए बहुत ही अहम होता है। यह रहमोकरम से भरा हुआ महीना है। 

माना जाता है कि इस महीने जन्नत के सारे दरवाजे खोल दिए जाते हैं। जहन्नुम (नरक) के सारे दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। इस रूप में शैतान को कैद कर लिया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि जो लोग महीने भर 'रोजा' रखते हैं, उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इस पूरे महीने में मुसलमान लोग खुदा की इबादत करते हैं। 

वे खुदा से दुआएँ माँगते हैं। वे भलाई का काम करते हैं। जहाँ तक होता है, नेकी करते हैं और बदी से बचते हैं।

रमजान के महीने में खुदा अपने बंदों को निराश नहीं करता। कहा जाता है कि इस अवसर पर खुदा हर मुसलमान की दुआ कुबूल फरमाता है।

रमजान के पूरे महीने रोजा रखना हर मुसलमान का फर्ज होता है। इस अवसर पर मुसलमान लोग पाँच वक्त की 'नमाज' पढ़ते हैं। 

रोजे में दिनभर खाना पीना बंद रहता है। रोजा रखनेवाले सूर्य निकलने के एक घंटा पहले नाश्ता लेते हैं। इसी तरह सूर्य डूबने के बाद ही खाते हैं। 

बाकी समय भूखे रहकर खुदा का ध्यान करना पड़ता है। मन में बुरे विचार न आएँ किसी की बुराई न करें-इसका ध्यान रखना पड़ता है।

जैसे ही चाँद दिखता है, अगले दिन ईद मनाई जाती है। इस अवसर पर मुसलमान गरीबों और जरूरतमंदों को अपनी हैसियत के मुताबिक दान करते हैं। 

ईद के दिन प्रातः ही लोग 'गुस्ल' (स्नान) करते हैं। सुंदर सुंदर कपड़े पहनते हैं। 

तरह-तरह के इत्र लगाते हैं। अच्छी तरह सज-धजकर नमाज पढ़ने के लिए निकलते हैं। 

नमाज खत्म होते ही सब आपस में गले मिलते हैं। मुसलमान लोग इस दिन आपसी दुश्मनी भूलकर आपस में एक-दूसरे के गले लग जाते हैं। दरअसल, ईद का त्योहार मन की पवित्रता और आत्मा की शुद्धता का है। 

इस अवसर पर घरों में सेवइयाँ बनाई जाती हैं। इस अवसर पर बच्चों को 'ईदी' दी जाती है। अतः बच्चों को ईद की लंबे समय से प्रतीक्षा रहती है। 

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