दहेज पर मैथिली कविता : 'आपकी कलम से' अंक में प्रस्तुत है, दहेज पर लिखी गयी एक मैथिली कविता जिसका शिर्षक है, "दहेज समाजक कलंक" । माधव झा इस मैथिली काव्यखण्ड के रचनाकार हैं।
शिर्षक : दहेज समाजक कलंक
लेखक : माधव झा
● दहेज प्रथा पर निबंध
चलते-चलते : प्रस्तुत कविता "दहेज समाजक कलंक" पर आप सभी की प्रतिक्रियाएं सहर्ष आमंत्रित की जाती है। दहेज पर लिखी गई इस मैथिली कविता पर अपने अमूल्य विचार comment box में जरूर लिखें।
साथ ही आप हमें अपनी रचनाएं भेज सकते हैं । आपकी रचनाओं को आपके नाम और फ़ोटो के साथ प्रकाशित किया जाएगा।
माधव झा फ़ाइल फ़ोटो |
लेखक : माधव झा
दा स' दायज फेर जहिया स बनल ई दहेज
जानि नै कतेक असंख्यक तोडलक कोरह आ करेज
की भाला बरछी तीर कमान धरगर
सभ स' बेसी धार होइत एकर ऐछ तेज ।।
बेच क' सर्वस्व पुराबथि दहेज जनक जेन्ना तेन्ना
नहि सोचथि खायब कथी जुड़त नून रोटी केन्ना ।
बेच लेता खेत - खरिहान आ सबटा घरारी त'
एतेक पैघ जिनगी में नै पुड़त खिचैर सन्ना ।।
दहेज ल' रहल ऐछ अगिनत बेटी केर बलि
पूछै लेल प्रश्न दैबा स' अचिया पर द्युलोक गेली
कखनो सीता , द्रौपदी , निर्भया सनक भाग्य भेटल
कहियो निर्दयी हाथे भ्रूणे में मारल गेली ।।
कम स' कम लेनाय बन्न करियौ
चाहे माय - बाप तामसे होइथ बिख ।
सभ कियो एतेक सिखियौ सिखबियौ
ई गरल , ई हाला के नहिये चीख ।।
फेर स्त्रीक केर दसो दिस डंका बाजत
दहेज नै लेता , सोचिये सभ लाजत ।
होत राखी , भरद्वितीया आओर सामा- चकेबा
धीक सिनेह स' घर स्वर्ग स' बेसी साजत
ऐछ माधव केर हृदयक पुकार
जँ सब मिली क' करथि विचार
हेबै करतै एकर समूल नाश
छै इहो रोगक सम्भव उपचार ।।
● दहेज प्रथा पर निबंध
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