गजल : बलजीत सिंह बेनाम की अप्रकाशित गजलें

पेश है, बलजीत सिंह बेनाम द्वारा रचित कुछ अप्रकाशित गजलें । बलजीत सिंह बेनाम एक प्रतिष्ठित संगीत अध्यापक हैं।

ये विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ कर चुके हैं। एवं इनकी रचनायें विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। 

अनगिनत मंचों द्वारा सम्मानित बलजीत सिंह बेनाम का काव्य पाठ आकाशवाणी हिसार और रोहतक से प्रसारित होता है।

Baljit singh benam

मिली जब से खबर तेरी....


मिली जब से ख़बर तेरी गली की
ज़रूरत रास आई ज़िंदगी की

नहीं होती हैं पूरी मरते दम तक
हज़ारो ख़्वाहिशें हैं आदमी की

किसी का ग़म सुनेगा किसको फ़ुर्सत
पड़ी है सबको अपने अपने जी की

कहे तो जा रहे हैं शे र लाखों
कमी है उनमें लेकिन ताज़गी की

बगावत कर ली आख़िर तीरगी से
जला कर एक शम्मां रोशनी की

चाहे थी ये मेरी आदत....


चाहे थी ये मेरी आदत दोस्तो
छोड़ दी फिर भी शराफ़त दोस्तो

एक सी है आग दोनों ही तरफ़
मेरे जैसी उसकी हालत दोस्तो

बंद हों सारे सियासी खेल अब
फिर वतन में हो मोहब्बत दोस्तो

ख़ानदानी ख़ुद को जो भी कहते थे
बेच आए वो ही इज्ज़त दोस्तो

इल्तज़ा है आपसे बस इतनी सी
इल्म की करना हिफाज़त दोस्तो

सवाल का जवाब तुम....


सवाल का जवाब तुम
हसीन माहताब तुम

जहां के वास्ते सनम
बहुत ही हो ख़राब तुम

तबाह मैं हुआ तो क्या
हो जाओ कामयाब तुम

मेरे लिए फ़क़त सनम
ख़ुदा का इन्तिख़्वाब तुम

कभी लगो ख़ुशी मुझे
कभी हो इज़्तराब तुम


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