दीवाली पर निबंध | Hindi Essay On Diwali

Hindi Essay On Diwali : हिंदी निबंध की इस श्रृंखला में आप पढ़ेंगे दीवाली पर निबंध। जिसका उपयोग आप अपने school या परीक्षाओं में decent Mark's obtain करने के लिए कर सकते हैं ।

दिपावली पर निबंध | Essay On Diwali In Hindi (1000 शब्द)


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दीपावली हिन्दुओं का महत्वपूर्ण उत्सव है। यह कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि में मनाया जाता है । इस रात को घर - घर में दीपक जलाए जाते हैं । इसलिए उसे ' दीपावली ' कहा गया । रात्रि के घनघोर अन्धेरे में दीवाली का जगमगाता हुआ प्रकाश अति सुन्दर दृश्य की रचना करता है ।

● दुर्गा पूजा पर निबंध

मनाने का कारण : diwali par nibandh

 दीवाली वर्षा - ऋतु की समाप्ति पर मनाई जाती है । धरती की कीचड और गन्दगी समाप्त हो जाती है । अत : लोग अपने घरों - दुकानों की पूरी सफाई करवाते हैं ताकि सीलन , कीड़े - मकोड़े और अन्य रोगाणु नष्ट हो जाएँ । दीवाली से पहले लोग रंग - रोगन करवाकर अपने भवनों को नया कर लेते हैं । दीप जलाने का भी शायद यही लक्ष्य रहा होगा कि वातावरण के सब रोगाणु नष्ट हो जाएँ ।

दीवाली के साथ निम्नलिखित प्रसंग भी जुड़े हुए हैं । ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्री रामचन्द्र जी रावण का संहार करने के पश्चात् वापस अयोध्या लौटे थे । उनकी खुशी में लोगों ने घी के दीपक जलाए थे । भगवान् महावीर ने तथा स्वामी दयानन्द ने इस तिथि को निर्वाण प्राप्त किया था । इसलिए जैन सम्प्रदाय तथा आर्य समाज में भी इस दिन का विशेष महत्व है । सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्द सिंह जी भी इसी दिन कारावास से मुक्त हुए थे । इसलिए गुरुद्वारों की शोभा इस दिन दर्शनीय होती है । इसी दिन भगवान् कृष्ण ने इन्द्र के क्रोध से ब्रज की जनता को बचाया था । .


व्यापारियों का प्रिय उत्सव : short hindi essay on diwali

 व्यापारियों के लिए दीपावली उत्सव - शिरोमणि है । व्यापारी - वर्ग विशेष उत्साह से इस उत्सव को मनाता है । इस दिन व्यापारी लोग अपनी - अपनी दुकानों का काया - कल्प तो करते ही हैं , साथ ही ' शभ - लाभ ' की आकांक्षा भी करते हैं । घर - घर में लक्ष्मी का पूजन होता है । ऐसी मान्यता है कि उस रात लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं । इस कारण लोग रात को अपने घर के दरवाजे खले रखते हैं । हलवाई और आतिशबाजी की दुकानों पर इस दिन विशेष उत्साह होता है । बाजार मिठाई से लद जाते हैं । यह एक दिन ऐसा होता है . जब गरीबि से अमीर तक , कंगाल से राजा तक सभी मिठाई का स्वाद प्राप्त करते हैं । लाग आतिशबाजी छोड़कर भी अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं । गहिणियाँ इस दिन कोई - न - कोई बर्तन खरीदना शकुन समझती हैं ।

हिंदुओं के लिए यह वर्ष के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है, और यह परिवार के साथ दिन बिताने और पारंपरिक गतिविधियों को करने के बारे में है। परिवार अपने घरों को ऊपर से नीचे तक साफ करते हैं ताकि जब दीपक जलाया जाए, तो लक्ष्मी इसे अपने घरों में प्रवेश करने के योग्य समझती हैं और अगले साल भर में उन्हें आशीर्वाद देती हैं।

फल, चावल का हलवा, फूल और अन्य मिश्रित उपहार चढ़ाए जाते हैं। इतना ही नहीं, चीजों को प्रियजनों को दिया जाता है, घरों को भी चित्रित किया जाता है, खातों को नवीनीकृत किया जाता है (ईसाई गुलाब के समान) और कई पड़ोसी, दोस्तों या परिवार के साथ टकराव का अवसर लेते हैं, क्योंकि यह आदर्श दिन है यह।

प्रत्येक मंत्र के साथ कुछ मंत्रों के साथ प्रार्थना करते हुए, प्रत्येक घर के सामने लक्ष्मी की एक वेदी लगाना उचित है।

शाम के समय लक्ष्मी की यात्रा का इंतजार करने के लिए, पूरे शहर में तेल के दीपक जलाए जाते हैं, जबकि घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ पूरी खुली रहती हैं और पूरे साल उनका आशीर्वाद छोड़ने के लिए प्रवेश करती हैं।

पवित्र नदियों में नावों को लैंप के साथ छोड़ दिया जाता है, और जितना अधिक वे आगे बढ़ते हैं, उतना ही खुशी उस वर्ष के लिए होगी जो इसे छोड़ चुके हैं।

भोर में, लोग अपने सिर धोते हैं, क्योंकि इसमें पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के समान आशीर्वाद है।

दिवाली पर तेल के दीपक और आतिशबाजी का महत्व

भारत में हर अनुष्ठान, विशेष रूप से दीवाली की छुट्टियों में, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, का एक गहरा अर्थ होता है, बिना कारण के कुछ भी नहीं किया जाता है। रोशनी के साथ घरों की रोशनी और आतिशबाजी और पटाखों के साथ आसमान में पैदा होने वाले वर्ष के लिए स्वास्थ्य, धन, ज्ञान, शांति और समृद्धि प्राप्त करने के लिए स्वर्ग के प्रति श्रद्धा है।



हिंदुओं के लिए, रोशनी का एक गहरा अर्थ है: प्रकाश अंधकार पर विजय प्राप्त करता है, बुराई से अच्छा, अपने निवासियों के घरों और दिलों को रोशन करता है, जो लक्ष्मी के आने का इंतजार करते हैं, उन्हें आशा प्रदान करता है, वे अनंतता का अनुभव करते हैं। इन दीपकों से सारा भारत रोशन होता है और पटाखों की ध्वनि, आनंद, मिलन और चारों ओर आशा के साथ मिश्रित होकर पटाखे और अगरबत्ती भारत की हवा को अपनी सुगंध से भर देते हैं।


निष्कर्ष : conclusion - hindi essay on diwali

दीवाली की रात को कई लोग खलकर जुआ खेलते हैं । इस कुप्रथा को बन्द किया । जाना चाहिए । कई बार जुएबाजी के कारण प्राणघातक झगड़े हो जाते हैं । आतिशबाजी पर भी व्यर्थ में करोड़ों - अरबों रुपया खर्च हो जाता है । कई बार आतिशबाजी के कारण आगजनी की । दुर्घटनाएं हो जाती हैं । इन विषयों पर पर्याप्त विचार होना चाहिए ।

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दीपावली हिंदुओं का प्रमुख पर्व है। यह पर्व समूचे भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। वर्षा और शरद् ऋतु के संधिकाल का यह मंगलमय पर्व है। 

यह कृषि से भी संबंधित है। ज्वार, बाजरा, मक्का, धान, कपास आदि इसी ऋतु की देन हैं। इन फसलों को 'खरीफ' की फसल कहते हैं।

जुडी है अनेक मान्यताएं 

इस त्योहार के पीछे भी अनेक कथाएँ हैं। कहा जाता है कि जब श्रीरामचंद्र रावण का वध करके अयोध्या लौटे, तब उस खुशी में उस दिन घर-घर एवं नगर-नगर में दीप जलाकर यह उत्सव मनाया गया। उसी समय से दीपावली की शुरुआत हुई। 

यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने नरकासुर का इसी दिन संहार किया था। 

यह भी कहा जाता है कि वामन का रूप धारण कर भगवान् विष्णु ने दैत्यराज बलि की दानशीलता की परीक्षा लेकर उसके अहंकार को मिटाया था। 

तभी तो विष्णु भगवान् की स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है।

जैन धर्म के अनुसार, चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर ने इसी दिन पृथ्वी पर अपनी अंतिम ज्योति फैलाई थी और वे मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। 

आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु भी इसी अवसर पर हुई थी। 

इस प्रकार इन महापुरुषों की स्मृतियों को अमर बनाने के लिए भी यह त्योहार बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है।

धनतेरस भी है प्रचलित 

यह त्योहार पाँच दिनों तक चलता रहता है। त्रयोदशी के दिन 'धनतेरस' मनाया जाता है। उस दिन नए-नए बरतन खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। 

एक कथा प्रचलित है कि समुद्र मंथन से इसी दिन देवताओं के वैद्य 'धन्वंतरि' निकले थे। इस कारण इस दिन 'धन्वंतरि जयंती' भी मनाई जाती है। 

दूसरे दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी' अथवा 'छोटी दीपावली' का उत्सव मनाया जाता है। 

श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के वध के कारण यह दिवस 'नरक चतुर्दशी' के नाम से जाना जाता । 

अपने-अपने घरों से गंदगी दूर कर देना ही एक प्रकार से नरकासुर के वध को प्रतीक रूप में मान लिया जाता है।

आमवस्या के दिन मनाई जाती है दिवाली 

तीसरे दिन अमावस्या होती है। दीपावली उत्सव का यह प्रधान दिन है। रात्रि के समय लक्ष्मी- पूजन होता है। 

उसके बाद लोग अपने घरों को दीप-मालाओं से सजाते हैं। बच्चे बूढ़े फुलझड़ी और पटाखे छोड़ते हैं। 

सारा वातावरण धूम-धड़ाके से गुंजायमान हो जाता है। 

इस प्रकार अमावस्या की रात रोशनी की रात में बदल जाती है।

चौथे दिन 'गोवर्द्धन- पूजा' होती है। यह पूजा श्रीकृष्ण के गोवर्द्धन धारण करने की स्मृति में की जाती है। 

स्त्रियाँ गोबर से गोवर्द्धन की प्रतिमा बनाती हैं। रात्रि को उनकी पूजा होती है। 

किसान अपने अपने बैलों को नहलाते हैं और उनके शरीर पर मेहँदी एवं रंग लगाते हैं। इस दिन 'अन्नकूट' भी मनाया जाता है।

पाँचवें दिन भैयादूज' का त्योहार होता है। इस दिन बहनें अपने-अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनके लिए मंगल कामना करती हैं। 

कहा जाता है कि इसी दिन यमुना ने अपने भाई यमराज के लिए कामना की थी। तभी से यह पूजा चली आ रही है। 

इसीलिए इस पर्व को 'यम द्वितीया' भी कहते हैं।

साफ सफाई का पर्व है दिवाली 

दरअसल दीपावली का पर्व कई रूपों में उपयोगी है। इसी बहाने टूटे-फूटे घरों, दूकान, फैक्टरी आदि की सफाई-पुताई हो जाती है। 

वर्षा ऋतु में जितने कीट-पतंगे उत्पन्न हो जाते हैं, सबके सब मिट्टी के दीये पर मँडराकर नष्ट हो जाते हैं।

जहाँ दीपावली का त्योहार हमारे लिए इतना लाभप्रद है, वहीं इस त्योहार के कुछ दोष भी हैं। 

कुछ लोग आज के दिन जुआ आदि खेलकर अपना धन बरबाद करते हैं। उनका विश्वास है कि यदि जुए में जीत गए तो लक्ष्मी वर्ष भर प्रसन्न रहेंगी। 

इस प्रकार से भाग्य आजमाना कई बुराइयों को जन्म देता है।

एक बात और दीपावली पर अधिक आतिशबाजी से बचना चाहिए, क्योंकि इसका धुआँ हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक है।

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