नक्सलवाद पर निबंध : जानिए नक्सलवाद क्या है ?


Naksalwad: आज के इस निबंध में आप जानेंगे नक्ससलवाद क्या है एवं नक्सलवाद पर निबंध लिखना सीखेंगे । 

अक्सर हमारे स्कूलों और कॉलेज में अथवा exams में नक्सलवाद की समस्या पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है। 

लेकिन इस संबंध में जानकारी के अभाव के कारण हम इस task को complete नही कर पाते हैं। 

आज से आपकी ये समस्या समाप्त हो जाएगी और आप भी  नक्सलवाद पर हिंदी निबंध लिख पाएंगे ।

दरअशल नक्सलवाद हमारी ही देन है। जब हमने निचे तबके के लोगो के जीवन एवं अस्तित्व पर संकट खरा किया तो वे अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हथियार उठाने पर मजबूर हो गए।   

खैर इस आर्टिकल में हम नक्सलाद क्या है एवं इसके निवारण के उपायों पर भी विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे, लेकिन इस हेतु आपको नक्सलवाद पर निबंध अंतिम पड़ाव तक पढ़ना होगा।

● राष्ट्रीय एकता पर निबंध


Essay on naksalwad, naksalwad kya hai



नक्सलवाद क्या है | essay on naksalwad in hindi


लेनिन ने कहा था - " प्रत्येक क्रांति का . मुख्य प्रश्न राजसत्ता का प्रश्न होता है । 

सभी राजनीतिक विचारधाराएँ जनसमर्थन जुटाती हैं , सत्ता चाहती हैं । नक्सलपंथी हिंसा का लक्ष्य भी पाता है। 

वे हिंसा , हत्या और हमलों के जरिए सत्ता पर कब्जे की तैयारी में हैं । 

" नक्सलपथा । निक्सली ) स्वयं को गरीव वर्ग से जोड़ते हैं तथा पूँजीपति एवं सत्ता अधिष्ठान को शोषक वर्ग ( शत्रु वर्ग ) के अंतर्गत परिगणित करते हैं। 

उनका एक ही उद्देश्य है शोषक वर्ग ( पंजीपनि वा ( पूजीपति एवं सत्ता अधिष्ठान ) को समाप्त करना ।

आप पढ़ रहे हैं आतंकवाद और नक्सलवाद पर निबंध। ......

 माओवादी कहें या नक्सली , ये संसदीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते । 

परिवार बिहार , आंध्र - प्रदेश , झारखण्ड , महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सहित बाईस राज्य नक्सली हिंसा से त्रस्त है। 

इन राज्यों की धरती निर्दोष लोगों के खून से सनी हुई है।


नक्सलवाद की उत्पत्ति



1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव के युवाओं के हथियार स्थानीय जमींदार अत्याचारों के खिलाफ उठे। सीधा संघर्ष हुआ । 

कामरेड चारु मजुमदार ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी ) से अलग होकर उस आंदोलन की अगुआई की। 

1969 में सी०पी० ( मार्क्सवादी - लेनिनवादी ) का गठन हुआ । नक्सलबाड़ी से उठी हुई विरोध की आवाज नवसलपण में तबदील हो गई । 

हिंसक गतिविधियों ने पूरी व्यवस्था को चुनौती दी । काँग्रेस नेता सिद्धार्थ शंका राय ( तत्कालीन मुख्यमंत्री ) ने नक्सलपंथ को समाप्त करने का निर्णय लिया । 

1971 में सेना के । लगभग चालीस हजार नौजवान तैनात हुए । घेराबंदी की गई । पुलिस तथा अन्य बलों ने बड़े पैमाने पर धड़पकड़ की । 

1972 में चारु मजूमदार को पकड़ा गया । उनकी मृत्यु पुलिस हिरासत में ही हो गई ।

नक्सलवाद का जन्म वसंत 1967 के नक्सलबाड़ी से हुआ है। 

नक्सलबाड़ी, उस गाँव का नाम जिसने आंदोलन को अपना नाम दिया था, एक किसान विद्रोह का स्थान था, जिसे राज्य के भूमि मालिकों के खिलाफ कम्युनिस्ट नेताओं ने उकसाया था। 

जबकि इस बिंदु पर, भारत 20 वर्षों से अंग्रेजों से स्वतंत्र था, देश ने औपनिवेशिक भूमि के किरायेदारी प्रणाली को बरकरार रखा था। 

ब्रिटिश साम्राज्यवादी व्यवस्था के तहत, स्वदेशी जमींदारों को कर राजस्व के संग्रह के बदले में भूमि के टुकड़े दिए गए थे और जैसा कि मध्यकालीन यूरोपीय सामंती व्यवस्था में था, इन जमींदारों ने अपनी आधी उपज के लिए किसानों को अपनी भूमि सौंप दी। 

जैसा कि 1971 की जनगणना द्वारा दिखाया गया है, लगभग 60% आबादी भूमिहीन थी, सबसे अमीर 4% के स्वामित्व वाली भूमि का शेर हिस्सा था।

जबकि इस घटना ने नक्सली आंदोलन की शुरुआत को चिह्नित किया जैसा कि हम आज जानते हैं, यह समझना महत्वपूर्ण है कि इसका उद्भव समय के साथ भारत में कम्युनिस्ट विचारधाराओं के विभिन्न टुकड़ों का परिणाम है। 

इसलिए, नक्सलवाद की प्रकृति को समझने के लिए, सबसे पहले अपने ही इतिहास में बदलाव करना चाहिए।


 लालगढ़ में नक्सलियों का ताण्डव जारी है । आज यह एक विकट समस्या के रूप में उभरा है । 

राज्य सरकारें और केन्द्र सरकार केवल बयानबाजी से संतुष्ट हैं । उनके पास इस समस्या के मूल में जाने की न तो दृष्टि है और न इससे निपटने का धैर्यपूर्ण संकल्प ।

 केन्द्र सरकार इसे कभी कानून और व्यवस्था की समस्या बताकर पूरी जिम्मेवारी राज्य सरकारों पर टरका देती है तो कभी इसे विकास की समस्या से जोड़कर अपने निर्णय की क्षमता पर ही प्रश्नचिह्न लगाती है ।

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नक्सलवाद पर निबंध | hindi essay on naksalwad


बिहार के चालीस जिलों ( दो पुलिस जिला समेत ) लगभग 33 जिले नक्सली गतिविधियों से प्रभावित हैं। 

2009 में 123 नक्सली बारदातें हुईं जिनमें पुलिसकर्मी समेत 54 लोग मारे गए । 2006 की तुलना में 2009 में नक्सली बारदातें दुगुनी हुई । 

यह चिंताजनक स्थिति है । सिर्फ झारखण्ड में ही 329 से ज्यादा पुलिसकर्मी मारे जा चुके हैं । नक्सली आधुनिकतम हथियारों से लैस हैं । पुलिस कानून से बँधी है । उस पर मानवाधिकार के बंधन हैं । 

वे हमलावर हैं । सेना के हेलीकॉप्टरों पर हमले हो रहे हैं । बावजूद इसके केन्द्र ने अब तक कोई ठोस कार्ययोजना भी नहीं बनाई है । 

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के निवासी दोहरी - तिहरी मार खा रहे हैं । ' दो तरफा अत्याचारों से पीड़ित नवयुवक ( नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के नवयुवक ) माओवादियों के साथ हो लेते हैं ।

 1967 में प्रारम्भ हुए नक्सली तांडव में अब तक 66 हजार से ज्यादा लोगों की बलि चढ़ चुकी है । ऐसे रक्तपिपासु नक्सलियों से वार्ता का कोई औचित्य नहीं दिखता। 

बिना शर्त सरकार से बात करने के प्रस्ताव को नक्सलियों ने खारिज कर दिया है। 

नक्सली नेताओं का तर्क है कि जब तक सरकार लोगों की आवाज दबाने के लिए हथियारों का प्रयोग करती रहेगी , तब तक People's liberations army के हाथों में हथियार रहेगा। 

निरीह आदिवासियों को अपनी ढाल बनाकर सशस्त्र क्रांति के बल पर सत्ता पलटने का सपना संजोए नक्सली अपने कम्युनिस्ट भाइयों की तरह आम आदमी के हितैषी होने का दावा करते हैं। 

किन्तु हकीकत बिलकुल विपरीत है । आज चीनी सुर पर तांडव मचानेवाले माओवादी - नक्सली देश की अखंडता के लिए खतरा पैदा कर रहे है ।

वर्तमान में आपने गलवान की घाटी में देखा कि किस प्रकार चीन की सेना नहीं बल्कि people's liberation army जो कि रजनीतिक दल के विचाारधारा धराओं पर चलने वाली सेेेेना है।

उसने हमारे देश के जवानों पर हमले किये।

ये नक्सलवादी उसी के विचारधारा पर चलती है। ऐसे में नक्सलियों को पनाह देकर हम अपने की घर मे दुश्मनों को पाल रहे हैं।

रक्तबीज नक्सली असुरों से निपटने के लिए राज्य सरकारों तथा केन्द्रीय सरकार को अपनी - अपनी संकल्प - शक्ति का परिचय देना होगा तथा एक बेहतर तालमेल के साथ एसा कार्ययोजना की रूपरेखा तैयार करनी होगी। 

जिसके कार्यान्वयन से असुर नक्सलियों का सफाया हो सके । नक्सलियों का उद्देश्य केवल हिंसा और आतंक है । इनके सफाए के लिए सैन्य कारवाई  से भी सरकार को गुरेज नहीं करना चाहिए ।

इनके ऊपर कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए ताकि राष्ट्र के लिए खतरा बन रहे इन रक्तबीजों का सफाया हो सके। 

जिससे देश की जनता चैन की सांस ले सके और देश के कोने-कोने तक विकास की लहर पहुंचे।


 वरिष्ठ पत्रकार संजय गुप्त नवर ने स्पष्ट सब्दों में लिखा है - " भले ही नक्सलवादी देश के पिछडे क्षेत्रों में विकास कार्य न होने की बात कह रहे हो, पर सच यह है कि अब वे खुद विकास विरोधी बन गए हैं ।

इन स्थितियों में यह आवश्यक है कि केन्द्र और राज्य वास्तव में मिलकर नक्सलियों से लड़े । कोशिश यह हा लंबी न खिचे और इसमें आम लोगों का कोई नुकसान न पहुचे। 

अन्यथा इस लड़ाई को जितना और मुश्किल हो जाएगा।

 " सरकार और माओवादियों के बीच बुद्धिजीवी मध्यस्थता करने को तैयार हों , तो इस समस्या का निदान हो सकता है ।

  मार्च 2010 में माओवादी नेता किशनजी ने मीडिया के माध्यम से ज्ञानपीठ पुरस्कार से पुरस्कृत महाश्वेता देवी के पास मध्यस्थता करने के लिए संदेश भेजा था। 

पश्चिमी मदिनीपुर जिले के लालगढ़ में माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच चल रहे झगड़े को रोकने के लिए बद्धिजीवियों ने पूर्व गृहमंत्री चिदंबरम के पास पत्र भेजा था । 

संभावनाओं के द्वार कभी बन्द नही होते हम आशान्वित हैं।


Conclusion :


उपर्युक्त article में हमने जाना नक्सलवाद क्या है और साथ ही नक्सलवाद पर निबंध लिखना भी सीखा । आशा करता हुँ की आपलोगों को ये लेखनी पसंद आई होगी। कृपया अपने विचार comment box में share करें।

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