महिला सशक्तिकरण पर निबंध | mahila sashaktikaran essay in hindi


प्रस्तुत है महिला सशक्तिकरण (mahila sashaktikaran ) पर हिंदी निबंध । इस हिंदी निबंध को step wise लिखा गया है । जिसे आप अपने school या exams में लिख सके । 

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प्रस्तावना : इस सृष्टि में दोनों रूपों को निरन्तर चलते रहने हेतु सृष्टि निर्माता ने सभी जीवधारियों में नर और मादा बनाए और तदनुरूप शरीर गठन किया।
 
दोनों के परस्पर सहयोग से ही जीवन की गाडी सरलता और सुगमता से चलती रहती है। 

दोनों ही गाडी के दो समान ऊंचाई के पहिए हैं। कोई कम ज्यादा नहीं। 

दोनों के ही कर्त्तव्य , अधिकार , कार्यक्षेत्र सुनिश्चित हैं और वैसे ही स्वभाव प्रदान किए हैं स्रष्टा ने। 

नारी कोमल , दयालु , संकोची , सेवाभावी है तो पुरुष कठोर एवं अधिक परिश्रमी है ।




समाज में नारी का स्थान - भारतीय दर्शन , संस्कृति , परम्पराओं में नारी को परुषों से भी ऊँचा स्थान दिया गया है ' यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ' । 

नारी देवी है , वह मां भी है , बहिन भी है , और पत्री भी । पर स्त्री को माता कहा गया है ' मातृवत् परदारेष ' । 

इतने उच्च स्थान पर भारतीय वाङ्मय में नारी का बखान किया गया है जबकि पाश्चात्य देशों में मात्र उसे उपभोग की वस्तु अथवा सुविधा की साझीदार माना गया है। 

प्राचीन काल में नारी शिक्षित , विदुषी , कर्तव्यपरायण होती थी। ज्ञान विज्ञान , अध्यात्म लोकाचार किसी भी क्षेत्र में पुरुष से कम नहीं थी। 

गार्गी , अपाला , अरुन्धती , आदि तो प्रवीणा थी ही , सावित्री जैसी भी थीं जो साक्षात यमराज से अपने पति सत्यवान् के प्राण वापस लाई थी।  

ऋषि आश्रम हो या राजमहल , कंगाल हो या धनवान , नारी सर्वत्र ही पूज्य थी।

नारी का महत्त्व - मध्य काल आते - आते नारी का स्थान पुरुषों की स्वार्थपरता , काम - लोलुपता , आदि के कारण न केवल गिर गया , बल्कि उसके अधिकारों पर कुठाराघात होने लगा , कार्यक्षेत्र सीमित हो गया , नारी को गन्दे कपड़े की तरह बरता जाने लगा । 

साहित्यकार भी नारी को दोषों की खान के रूप में देखने लगे । एक अंग्रेजी नाटककार ने तो यहाँ तक कहा है कि


 Frailty ! Thy name is woman ' . ( व्यभिचार , दुर्बलता ! तेरा नाम ही औरत है )

विदेशियों की काम - लोलुप निगाहों से बचने के लिए पर्दा प्रथा प्रारम्भ हुई , नारी घर की चारदीवारी में कैद हो गई तथा शिक्षा के प्रति भी नारी को निरुत्साहित किया गया ।

महिला सशक्तीकरण महिलाओं को अपने व्यक्तिगत आश्रितों के लिए अपने निर्णय लेने के लिए सशक्त बना रहा है। 

महिलाओं को सशक्त करना उन्हें सभी सामाजिक और पारिवारिक सीमाओं को छोड़कर, मन, विचार, अधिकार, निर्णय आदि सभी पहलुओं में स्वतंत्र बना रहा है। 

यह सभी क्षेत्रों में पुरुषों और महिलाओं के लिए समाज में समानता लाना है। परिवार, समाज और देश के उज्ज्वल भविष्य को प्राप्त करने के लिए महिलाओं का सशक्तिकरण बहुत आवश्यक है। 

महिलाओं को एक नए और अधिक सक्षम वातावरण की आवश्यकता है ताकि वे हर क्षेत्र में अपने स्वयं के सही निर्णय ले सकें, चाहे वह अपने परिवार, समाज या देश के लिए हो। 

देश को पूरी तरह से विकसित करने के लिए, विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महिलाओं का सशक्तिकरण एक आवश्यक उपकरण है।

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नारी जागरण व नारी शिक्षा हेतु प्रयास - आधुनिक काल आते - आते जहाँ नारी को पैरों की जूती समझा जाता था , अनेक अत्याचार उन पर होते थे वहाँ अब नारी जागरण , नारी स्वातन्त्र्य का बिगुल बज उठा । 

स्वामी दयानन्द के आर्य समाज ने नारी शिक्षा का मन्त्र फूंका . राजा राममोहन राय ने सती - प्रथा रुकवाई , महात्मा गांधी ने नारी उत्थान का नारा दिया , अनेक समाजसेवी व्यक्तियों ने पतित अबलाओं , अपहताओं और वेश्याओं का उद्धार किया । 

सरकार ने भी संविधान द्वारा नारी को शिक्षा प्राप्त करने , नौकरी करने , आदि के समान अधिकार और अवसर प्रदान किए हैं। 

महिला सुधार हेतु नारी निकेतन खोल दिए गए हैं। 

आज को नारी डॉक्टरी , इन्जीनियरिंग , अध्यापन , लिपिकीय कार्य आदि क्षेत्रों में तो काम कर ही रही है , पुलिस , रक्षा के क्षेत्र में भी उच्च पदस्थ हैं। 

प्रतिभा देवी पाटिल ( राष्ट्रपति ) , किरण बेदी , बछेन्द्रीपाल ( पर्वतारोहण में ) अपना उच्च स्थान प्राप्त कर चुकी हैं। 

दहेज प्रथा को भी समाप्त करने के लिए कानून पारित किया जा चुका है। 

किन्तु समाज ने उसे अभी पूर्णरूपेण नहीं अपनाया है , अत : आए दिन बंधुओं को जलाने , घर से निकाल बाहर करने की घटनाएं देखने सनने को मिलती रहती हैं ।




उपसंहार - यद्यपि सरकारी एवं गैर - सरकारी संस्थाओं एवं समाजसेवी व्यक्तियों द्वारा महिला उत्थान के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं और किए जाते रहेंगे. 

तथापि जब तक समाज जागरूक नहीं होगा और नारियों के प्रति असहिष्णुता का दृष्टिकोण नहीं त्यागा जाएगा तबतक पर्याप्त सफलता नहीं मिलेगी। 

आज आवश्यकता है कि पुरुष समाज अपने दृष्टिकोण को बदले , नारी को सच्चे हृदय से ऊपर उठाकर समकक्ष लाने का प्रयास करे और उसकी प्रगति में अडंगे डालने से बाज आए। 

साथ ही नारियों का भी दायित्व है कि वे अपने दाम्पत्य और पारिवारिक जीवन को स्वच्छ और सफल बनाते हुए अपने त्याग , सहिष्णुता , लज्जा , आदि दैवीय गुणों को न त्यागे , वरन् सेवाव्रती , कर्तव्यपरायणा बनी रहें। 

बरसाती नदी जो अपने कुलों को तोड़ती - फोड़ती। गति से बहती है उसकी भाँति अमर्यादित न हो जाएँ। 

तभी वह अपने उच्च महत्वपूर्ण उच्छ्ख स्थान को पुनः प्राप्त कर सकेंगी ।

श्री गोपाल सिंह नेपाली ने प्रस्तुत गीत में मानवीय सौन्दर्य और भावना की श्रेष्ठता का बखान किया है। 

वह ईश्वर के सौन्दर्य का उत्सव है किन्तु वह हमारी भावनाओं के प्रति सदैव मौन रहता है.

चलते - चलते : mahila sashaktikaran essay in hindi


इस निबंध की प्रस्तुति महिला सुरक्षा मंच के member राजीव धनोई ने दी है। mahila sashaktikaran essay in hindi आपको कैसी लगी comment कर के जरूर बताइयेगा।

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