Noise pollution in hindi | ध्वनि प्रदूषण


Noise pollution in hindi : अप्रिय ध्वनि शोर कहलाती है और इसी प्रकार की कर्कश ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है। यह ध्वनि तरंगों के स्रोत , आवृत्ति , तीव्रता आदि पर निर्भर करती है ।

सामान्य रूप से 25 डेसीबिल ( decibel ) की ध्वनि को खामोशी , 65 डेसीबेल तक की ध्वनि को शान्त , 75 डेसीबल तक साधारण शोर तथा 76 से अधिक डेसीबेल से अत्यधिक शोर हो सकता है । 100 डेसीबेल की ध्वनि से हानिकारक प्रभाव होते हैं तथा यह कर्कश होती है ।

आज के दौर में पूरा विश्व ध्वनि प्रदूषण ( Noise pollution in hindi ) से जूझ रहा है। ऐसे हमे प्रकृति की आवश्यकता को समझते हुए, कुछ आवश्यक कदम उठाने होंगे।

About noise pollution in hindi, dhwani pradushan

शोर के मुख्य प्रभाव : about noise pollution in hindi

1. सतत शोर सुनने से मनुष्य बहरा हो जाता है तथा सर में दर्द व बेचैनी महसूस करता है ।

2. अधिक शोर ( 90 - 100 डेसीवेल से अधिक ) सुनने पर मनुष्य में उत्तेजना तथा बेचैनी हो जाती है ।

जठर माँसपेशी का संकीर्णन , अम्ल का अधिक बनना , रक्तचाप बढ़ना , हृदय की धड़कन तेज होना आदि मनुष्य पर होने वाले प्रभाव हैं ।

मनुष्य का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है । रक्त चाप तथा हृदय के रोगी को अधिक शोर में अत्यन्त परेशानी होती है ।

3. सतत शोर के कारण अल्सर भी हो सकता है । मनुष्य को भली प्रकार नींद नहीं आती है ।

जिससे उसके शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य में हानि की सम्भावना रहती है । अधिक शोर । से मनुष्य की कार्यक्षमता में कमी आती है ।

4. 120 डेसीवेल से अधिक की ध्वनि गर्भवती महिलाओं पर हानिकारक प्रभाव डालती है ।

नियन्त्रण : Noise pollution in hindi

( i ) ऐसे उपकरणों का उपयोग करना चाहिए जिससे शोर की तीव्रता कम हो ।

( ii ) ध्वनि अवशोषक पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए।

( iii ) पौधों को उगाने से शोर की तीव्रता में कमी आती है ।

( iv ) जनरेटर , गाड़ियों आदि में साइलेन्सर का प्रयोग करना चाहिए । अनावश्यक रूप से हॉर्न बजाने , लाउडस्पीकर आदि पर प्रतिबन्ध होना चाहिए ।

( v ) घरों , दूकानों आदि पर शोर नियन्त्रण के लिए कानून बनाना चाहिए तथा उसको कड़ाई । से लागू करना चाहिए ।

( vi ) स्कूल व अस्पताल के पास 100 मीटर क्षेत्र में शान्त क्षेत्र ( silent zone ) विकसित - करना , वृक्षों का प्रयोग शोर ( noise ) प्रदूषण को कम करने में सहायक होता है ।

विभिन्न ध्वनियों की तीव्रता : Noise pollution in hindi

● मनुष्य के हृदय की धड़कन   - 15 Decibel

● सामान्य बातचीत में   -   50 - 60 Decibel

● कार का हॉर्न              -   80 - 90 Decibel

● शेर की दहाड़             -   90 - 95 Decibel

● बिजली कड़कना        -    120  Decibel

● एरोप्लेन इंजन( 35 मीटर दूर से ) -105 Decibel

● जेट एरोप्लेन उड़ते समय       - 150 Decibel

● सड़क का शोर          -  80 - 100 Decibel

ध्वनि प्रदूषण पर निबंध -2

आज समूचे विश्व में ध्वनि प्रदूषण की समस्या हलचल मचाए हुए है। क्षेत्रीय पर्यावरण में इसका बड़ा प्रतिकूल असर पड़ता है। मानसिक रोगों को बढ़ाने एवं कान, आँख, गला आदि के रोगों में शोर की जबरदस्त भूमिका है।

'तीखी ध्वनि' को शोर हैं। शोर की तीव्रता को मापने के लिए 'डेसीबेल की व्यवस्था की गई है। चाहे विमान की गड़गड़ाहट हो अथवा रेलगाड़ी की सौटी, चाहे का होने हो अथवा लाउड स्पीकर की चौख-कहीं भी शोर हमारा पीछा नहीं छोड़ता। 

दिनोदिन यह प्रदूषण फैलता ही जा रहा है। शोर से दिलो-दिमाग पर भी असर पड़ता है। इससे हमारी धमनियाँ सिकुड़ जाती हैं। हृदय धीमी गति से काम करने लगता है। गुरदों पर भी इसका प्रतिकूल असर पढ़ने लगता है।

लगातार शोर से 'कोलेस्टेरॉल' बढ़ जाता है। इससे रक्त शिराओं में हमेशा के लिए खिचाव पैदा हो जाता है। इससे दिल का दौरा पड़ने की आशंका बनी रहती है। 

अधिक शोर से स्नायु तंत्र प्रभावित होता है। दिमाग पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। यही कारण है कि हवाई अड्डे के आस-पास रहनेवालों में से अधिकतर लोग संवेदनहीन हो जाते हैं।

बच्चों पर शोर का इतना बुरा असर पड़ता है कि उन्हें न केवल ऊँचा सुनाई पड़ा। है, बल्कि उनका स्नायु-तंत्र भी प्रभावित हो जाता है। परिणामस्वरूप बच्चों का सही ढंग से मानसिक विकास नहीं हो पाता।।

असह्य शोर का संतानोत्पत्ति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। हवाई अड्डे के आस पास रहनेवाली गर्भवती महिलाएँ कम वजनवाले शिशु को जन्म देती हैं। 

अगर गर्भवती महिला गर्भावस्था के दौरान लगातार शोरगुल के बीच रहे तो उसके भ्रूण पर भी बुरा असर पड़ता है।

किसी भी शहर में अधिकतम ४५ डेसीबेल तक शोर होना चाहिए। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई में ९० डेसीबेल से भी अधिक शोर मापा गया है। 

मुंबई को 'विश्व का तीसरा सबसे अधिक शोरगुलवाला शहर' माना जाता है। ध्वनि प्रदूषण के मामले में दिल्ली भी मुंबई के समकक्ष ही है। यही हाल रहा तो सन् २०१० तक ५० प्रतिशत दिल्लीवासी इससे गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।

अंतरराष्ट्रीय मापदंड के अनुसार, ५६ डेसीबेल तक शोर सहन किया जा सकता है। हालांकि अस्पतालों के आस-पास यह ३५ से ४० डेसीबेल तक ही होना चाहिए। 

पश्चिमी देशों में ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए ध्वनि-विहीन वाहन बनाए गए हैं। वहाँ शोर रोकने के लिए सड़कों के किनारे बाड़ लगाई गई हैं। भूमिगत रास्ता बनाया गया है। 

ध्वनि प्रदूषण फैलानेवाली गाड़ियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इनके अलावा अधिकतर देशों ने रात में विमान उड़ानें बंद कर दी हैं। 

भारत में ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ आंदोलन की गति बहुत धीमी है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, इसका प्रमुख कारण यह है कि हममें से अधिकतर इसे 'प्रदूषण' नहीं, बल्कि 'दैनिक जीवन का एक हिस्सा' मानते हैं।

एक सर्वेक्षण के अनुसार, व्यक्ति यदि लगातार बहुत अधिक शोर शराबेवाले स्थान में रहे तो वह स्थायी तौर पर अथवा हमेशा के लिए बहरेपन का शिकार हो जाता है। 

इस तरह के सबसे ज्यादा मामले ४० प्रतिशत- फाउंड्री उद्योग में तथा सबसे कम ३२.७ प्रतिशत तेल मिलों में पाए गए। 

कपड़ा मिलों में ३२.६ प्रतिशत, रिफाइनरी में २८.२ प्रतिशत, उर्वरक कारखानों में १९.८ प्रतिशत, बिजली कंपनियों में सबसे कम यानी ८.१ प्रतिशत पाए गए। बाँसुरी की आवाज यदि बहुत तेज होती है |

तो व्यक्ति मानसिक बीमारी का शिकार हो जाता है। कई मामलों में वह आक्रामक व्यवहार करने लगता है। सबसे ज्यादा शोर लाउड-स्पीकरों से होता है। 

इसके अतिरिक्त सड़क व रेल में तथा विमान यातायात, औद्योगिक इकाइयों का शोर, चीखते सायरन, पटाखे आदि शामिल हैं।

भारत में अभी तक शोर पर नियंत्रण पाने के लिए कोई व्यापक कानून नहीं बनाया गया है। यदि इस प्रदूषण से बचने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं किया गया तो अगले बीस वर्षों में इसके कारण अधिकांश लोग बहरे हो जाएँगे। 

केंद्रीय पर्यावरण विभाग तथा केंद्र और राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोडों की वरीयता सूची में ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण का स्थान सबसे नीचे है। 

ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण निम्नलिखित उपायों के द्वारा पाया जा सकता है -

  1. धीमी और तेज गति के वाहनों के लिए अलग-अलग मार्ग बनाए जाएँ तथा इनमें प्रेशर हॉर्न बजाने पर पाबंदी हो।
  2. झुग्गी-झोंपड़ी और कॉलोनियों का निर्माण इस प्रकार हो कि वे सड़क से काफी फासले रहें।
  3. मुख्य सड़क और बस्तियों बीच जमीन एक बड़ा भाग खाली छोड़ा जाए। ध्वनि प्रदूषण प्रति लोगों जागरूक बनाने लिए जन-जागरण कार्यक्रम बनाए जाएँ।
  4. विवाह समारोह एवं पार्टी आदि समय लाउड-स्पीकरों बजाने पूर्णतः प्रतिबंध तथा पर्व-त्योहारों खुशी मौकों पर अधिक शक्तिवाले पटाखों के चलाने पर रोक लगाई जाए।
  5. वाहनों हॉर्न को अनावश्यक रूप बजाने पर रोक लगाई जाए। इस प्रकार कानून बनाए जाएँ, जिससे सड़कों, कारखानों तथा सार्वजनिक स्थानों पर शोर कम किया जा सके।

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निष्कर्ष : ध्वनि प्रदूषण

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