लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल पर निबंध एवं उनकी जीवनी

लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल पर निबंध के अंतर्गत जानिए सरदार पटेल की जीवनी. जिन्होंने भारत की एकता एवं अखंडता को बनाये रखने में अपना अमूल्य योगदान दिया.

आज यदि सरदार पटेल न होते तो शायद हमारा भारत तास के पत्तों की तरह बिखर गया होता. 

हम टुकरों में बाँट दिए गए होते. 

लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल : निबंध एवं जीवनी 


सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म ३१ अक्तूबर, १८७४ को गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था। उनके पिता ने सन् १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। 

वे बचपन से ही जुझारू प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उनके छात्र जीवन में सभी उनसे परेशान रहते थे। उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड गए। 

वहाँ जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की और वहाँ से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। उनकी वकालत अच्छी चलती थी। सन् १९९६ में वे गांधीजी के संपर्क में आए। 

वे गांधीजी को बहुत मानते थे। गांधीजी भी सरदार पटेल का बहुत सम्मान करते थे। सन् १९२८ में' वारदोली सत्याग्रह' को सफल कैसे बनाया जाए- यह समस्या बनी हुई थी। 

वल्लभभाई ने इस ऐतिहासिक आंदोलन का सफल संचालन किया था। इससे उन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली। बात सन् १९२७ की है। 

किसानों की एक सभा हुई। उसमें निर्णय किया गया था कि बढ़ा हुआ लगान नहीं दिया जाएगा। बंदोबस्त अधिकारियों के आदेश से किसानों पर ३० प्रतिशत कर लगा दिया गया था। 

किसानों ने कई आवेदन-पत्र आदि दिए, किंतु सरकार पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंत में आंदोलन की धमकी दे दी। 

इसके पूर्व वल्लभभाई पटेल ने किसानों को खूब ठीक बजाकर देख लिया था। १२ फरवरी, १९२८ को कर भुगतान करने के लिए शासन ने अंतिम तारीख निर्धारित की। 

एक भी किसान कर देने के लिए नहीं पहुँचा। १२ फरवरी को किसानों को एक विशाल सभा हुई। उसमें सत्याग्रह करने का निर्णय किया गया। 

पटेल ने पूरे क्षेत्र को पाँच भागों में बाँटे दिया। फिर आठ छावनियों का संगठन किया। उन्हीं दिनों पटेल ने 'सत्याग्रह समाचार' नामक एक दैनिक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया। 

अंततः सरकार से समझौता हुआ सत्याग्रहियों की विजय हुई। इस आंदोलन की सफलता पर उन्हें 'सरदार' की उपाधि मिली थी।

सन् १९१३ में वल्लभभाई पटेल को 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' का अध्यक्ष बना गया। सन् १९४९ में अंतरिम सरकार में वे सम्मिलित । 

उन्होंने गृह मंत्रालय, सूचना हुए। और प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार सँभाला। स्वतंत्र भारत में उन्हें उप प्रधानमंत्री बनाया गया ।  

अत्यंत संवेदनशील और विकट परिस्थितियों में उन्होंने भारत के गृह मंत्री तथा प्रांतों के मंत्रालयों का गुरुतर भार सँभाला। 

भारत की एकता, अखंडता के लिए उन्होंने अद्वितीय कार्य कर दिखाया। १५ दिसंबर, १९५० को भारतीय जन-जन का प्यारा यह लौह  पुरुष हमेशा-हमेशा के लिए हमसे दूर चला गया।


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