डॉ. सालिम अली पर निबंध एवं उनकी जीवनी

डॉ. सालिम अली पर निबंध के अंतर्गत जानिए About Salim Ali In Hindi एवं उनकी जीवनी.

प्रकृति की रक्षा के लिए सलीम अली ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. ऐसे सख्स के बारे में जानना हमारे लिए गौरव की बात होगी.

Dr Salim Ali Biography In Hindi के अंतर्गत इस महान सख्स के कार्यों की विस्तृत जानकारि शामिल है.

डॉ. सालिम अली | About Salim Ali In Hindi

पक्षी जगत् का पर्याय बने डॉ. सालिम अली का जन्म १२ नवंबर, १८९६ को बंबई महानगर में हुआ था। बंबई भारत की व्यावसायिक नगरी है। 

जब वे मात्र एक साल के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। दो साल बाद उनकी माता का भी देहांत हो गया।बारह वर्ष की अवस्था में सालिम अली ने अरगन से एक पीले रंग की चिड़िया शूट कर दी थी। 

वह चिड़िया आम चिड़ियों से भिन्न थी। उन्हें वह चिड़िया बहुत अच्छी लगी। उन्होंने अपने मामा से उस चिड़िया के बारे में पूछा। 

उनके मामा अमीरुद्दी 'प्राकृतिक इतिहास सोसाइटी के सदस्य थे। मामा ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया। हाँ, उन्होंने सालिम अली को सोसाइटी के अजायबघर जाने में सहयोग दिया। 

वहाँ उन्हें तरह-तरह के पक्षियों के बारे में जानकारी मिली। वे अपने साथ उस मारी गई चिड़िया को भी कागज में लपेटकर ले गए थे। 

उन्हें उस चिड़िया के बारे में भी जानकारी दी गई। यहीं से उनके मन में पक्षियों के विषय में और अधिक जानने की इच्छा जाग्रत हुई।

सन् १९२१-३० में उन्होंने बर्लिन विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान संग्रहालय' में पक्षी विज्ञान का गहन प्रशिक्षण लिया। उन्होंने सन् १९२७ में बंबई की प्राकृतिक सोसाइटी' की पत्रिका का संपादन शुरू किया। 

सन् १९५० में वे इस सोसाइटी के सचिव बने। सन् १९५८ में डॉ. सालिम अली को उनकी कई उपलब्धियों के लिए 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया गया। 

उनकी पुस्तक 'फाल ऑफ द स्पैरो' में उनकी आत्मकथा है। जब वे ९० वर्ष के थे तब यह पुस्तक प्रकाशित हुई। प्राकृतिक और वन्य जीव संरक्षण में उनकी सेवाओं को देखते हुए उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया गया था।

उन्हें वन्य जीव संरक्षण के लिए कई पुरस्कार सम्मान दिए गए। उनमें थे 'इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर' (१९६९), 'पाल फेटी' अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार (१९७६), 'पद्म विभूषण' (१९७६),

 'सोवियत एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंस' ने 'पॉब्लोस्की सेनेटरी' (१९७८), हॉलैंड के राजकुमार बर्नार्ड ने उन्हें 'ऑर्डर द गोल्डन आर्क' (१९७६) तथा १९७७ में ऑर्डर ऑफ गोल्डन आक' की उपाधि प्रदान की गई।

उनकी पत्नी तहमीन को भी पक्षियों से बड़ा लगाव था। वे अपने पति के साथ बहुत समय तक न रह सकीं। सन् १९३१ में उनकी मृत्यु हो गई।

सालिम अली पक्षी विज्ञानी के रूप में पूरे संसार में प्रसिद्ध हुए। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे। १९ जून, १९८७ को बंबई में उनकी मृत्यु हो गई।


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