अशफाक उल्लाह खाँ पर निबंध एवं उनकी जीवनी

अशफाक उल्लाह खाँ पर निबंध के अंतर्गत जानिए अशफाक उल्लाह खां की जीवनी जिनके अदम्य साहस की चर्चा आज भी लगों की जुबान पे हैं.

अशफाक उल्लाह खाँ

अशफाक उल्लाह खाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में हुआ था। बालक बचपन से ही साहसिक कार्यों में रूचि लेने लगे थे। 

घुड़सवारी, तैराकी, शिकार आदि में अशफाक की गहरी रुचि थी। उनका पूरा नाम अशफाक उल्लाह खाँ वारसी था। 

अशफाक ने सरकार को हिलाकर रख दिया था। अशफाक के नाम से ही सरकार थरथर काँपती थी क्रांति-युग के महान् सेनानी के रूप में अशफाक उल्लाह का नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में प्रसिद्ध है। 

उनके लिए सब धर्म और मंदिर मसजिद, बराबर थे। अशफाक कितने महान थे, इस घटना से आप समझ सकते हैं।अशफाक जेल को काल कोठरी में फाँसी के दिन का इंतजार कर रहे थे। 

उनसे डी.बाई. एस. पी. (सी.आई.डी.) तसद्दुक हुसैन आकर मिले और बोले, "देखो अशफाक, हम तुम दोनों मुसलमान हैं। 

काफिर रामप्रसाद 'बिस्मिल' आर्यसमाजी है। हमारे मजहब का जानी दुश्मन है। तुम सबका साथ छोड़कर क्रांतिकारियों के बारे में सबकुछ बता दो। 

हम तुम्हें इज्जत देंगे, शोहरत देंगे।" यह सुनकर अशफाक का चेहरा तमतमा गया। वह डी. वाई. एस. पी. को डाँटते हुए बोले, "खबरदार जो इस तरह की फिर कभी बातें कीं।

पंडितजी 'विस्मिल' सच्चे हिंदुस्तानी हैं। आपने पंडितजी को काफिर कहा है, आप तुरंत मेरे सामने से चले जाइए।"

अशफाक 'काकोरी कांड' के अभियुक्त थे। उसी अभियोग में उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई थी। 'काकोरी केस' अपने समय का 'सबसे बड़ा क्रांतिकारी मुकदमा' था। 

इस संबंध में दो मुकदमे चले थे- पहला प्रधान मुकदमा और दूसरा पूरक मुकदमा पूरक मुकदमा अशफाक उल्लाह खाँ और शरतनाथ बख्शी को लेकर चला था। 

अशफाक उल्लाह खाँ क्रांतिकारी धर्म का निर्वाह करते हुए १५ दिसंबर, १९२७ को फैजाबाद जेल में खुशी-खुशी फाँसी के तख्ते पर झूल गए।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ