बिहार की राजकीय भाषा हिंदी है. राजकीय भाषा का अर्थ सीधे शब्दों में उस भाषा को दर्शाता है जिसमें उस राज्य की सभी संवैधानिक एवं कार्यालय के कामकाज संपादित किए जाते हैं.
हालांकि बिहार में हिंदी के अलावा अन्य बहुत सारी भाषाएं बोली जाती है. जिनमें मैथिली, भोजपुरी, मगही, उर्दू इत्यादि भाषाओं को बोलने वालों की तादाद कहीं ज्यादा है.
भाषा को लेकर बिहार के विभिन्न भागों में भिन्नता है साफ-साफ देखि एवं महसूस की जा सकती है.
हिंदी के प्रसार में पहली सफलता 1881 में बिहार में मिली, जब हिंदी ने उर्दू को प्रांत की एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में विस्थापित कर दिया।
हिंदी और उर्दू की होड़ में इस क्षेत्र की तीन बड़ी मातृभाषाओं मगही, भोजपुरी और मैथिली के संभावित दावों की अनदेखी की गई।
स्वतंत्रता के बाद बिहार राजभाषा अधिनियम, 1950 के माध्यम से हिंदी को फिर से एकमात्र आधिकारिक दर्जा दिया गया। 16 अगस्त 1989 को अविभाजित बिहार राज्य में उर्दू दूसरी आधिकारिक भाषा बन गई।
बिहारी भाषाओं में मैथिली एकमात्र ऐसी भाषा रही है, जो अपनी पहचान पर हिंदी के अधिरोपण को लगातार नकारने का प्रयास करती रही है।
अन्य दो (भोजपुरी और मगही) ने अपने दावों को छोड़ दिया है और हिंदी की बोलियों की स्थिति को स्वीकार करने के लिए इस्तीफा दे दिया है।
मैथिली वक्ताओं के नेतृत्व में एक सक्रिय आंदोलन के बाद, मैथिली को 2003 में भारत सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई थी।
इन सभी के बावजूद बिहार की राजकीय भाषा हिंदी है और सभी संवैधानिक कार्य हिंदी भाषा में ही संपन्न किए जाते हैं.
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