पर्यटन का महत्त्व : advantage of tourism in hindi


Paryatan ka mahatva : प्रस्तुत निबंध आधुनिक युग मे पर्यटन के महत्त्व को इंगित करता है। दैनिक जीवन की भागम-भाग से दूर कहीं चिर शांति की तलाश सभी को होती है।

क्योकि मानव के मनोरंजन और मानसिक स्वास्थ्य के लिए पर्यटन को प्राथमिकता देने सबसे अच्छा उपाय है। जिसे विज्ञान ने भी बेहिचक स्वीकार किया है।

Paryatan ka mahatva, advantage of tourism

एक शायर ने लिखा है,

    सैर कर दुनिया की
    गाफिल जिन्दगी फिर कहाँ ?

सचमुच जिसने सैर नहीं की . वह जीवन का असली आनन्द नहीं पा सका क्योंकि अपनी छत के मुंडेरे से सूर्योदय देखना और है , किसी पहाडी की चोटी से उगते हुए सूरज को देखना कुछ और है ।

पुस्तकों में ताजमहल की खुबसूरती के नारे में पढना और दुधिया चाँदनी में उसकी सुन्दरता निहारना बिल्कुल भिन्न - भिन्न अनुभव है ।

वस्तुतः यह संसार एक मनोरम चित्रशाला है । जो अपने घर से बाहर कदम नहीं रखते , वे इस विवशता के मोहक चित्रों को नहीं देख पाते हैं ।

जिन्होंने गंगा , ब्रह्मपुत्र , सोन की पहाड़ों , जंगलों और मैदानों में उछलते - कदते नहीं देखा वे क्या जानें कि इनका संगीत किसी महफिल के संगीत की अपेक्षा कितना मधुर है ।

जिन्होंने वनफुलों को नहीं देखा , उन्हें क्या मालूम कि फूलवारी में फूल खिलते हैं , वन में फूल हँसते हैं । सच तो यह है कि घर की चहारदिवारी लाँघने वाला ही तो देखता है कि इस संसार में , इस मुल्क में महल है , तो झोपड़ी भी है । और , कहीं सुख का सागर है तो कहीं दुख का दरिया भी ।

देशाटन का अर्थ है देश घूमना , देखना । वस्तुतः देशाटन से ही पृथ्वी के अनगिनत रहस्यों पर से पर्दा उठता है , मानव मन की थाह मिलती है । यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने देशाटन को आवश्यक बताया है । संस्कृत में कहावत है —

' देशाटन पण्डितमित्रता च । '

तात्पर्य यह है कि समझदारी के दो रास्ते हैं — देशाटन और विद्वान का सत्संग ।

देशाटन से एक नहीं , अनेकों लाभ हैं । पर्यटन के दौरान न सिर्फ आदमी स्थानों का सैर करता है बल्कि नाना प्रकार के लोगों के संपर्क में आता है जिससे आदमी को समझने - बूझने की शक्ति विकसित होती है।

साथ ही , सहिष्णुता , आत्मनिर्भरता और व्यवहार - कुशलता का पाठ भी आदमी पढ़ता है । सबसे बड़ी बात यह होती है कि आदमी के विचार व्यापक हो जाते है और पूर्वाग्रहों से परे हो जाता है ।

किसी विद्वान ने ठीक ही कहा है कि जो देशाटन नहीं करता उसकी दृष्टि काफी संकचित और विचार उदार नहीं होते ।
अत : देशाटन की जितनी प्रशंसा की जाय कम है । वस्तुत : एक विश्व की कल्पना को देशाटन द्वारा ही साकार किया जा सकता है ।

अपने देश में चारों - धाम की यात्रा इसलिए आवश्यक बतायी जाती है कि इसकी यात्रा से देश को जानने और समझने का मौका मिलता है और राष्ट्रीयता की भावना विकसित होती है ।

सच्ची बात तो यह है कि चिरंतर सत्य को जानने के लिए देशाटन अत्यावश्यक है । यही कारण है कि हमारे यहाँ कहावत है - चरैवेति - चरैवेति , 

अर्थात् चलते चलो , चलते चलो ।

निष्कर्ष : पर्यटन का महत्व

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